वैष्णवी ब्लड की जाँच रिपोर्ट
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. अशोक गौतम1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
दिल दिमाग़ में ख़ारिश तो ख़ैर हर वक़्त होती रहती थी, पर अब कुछ दिनों से शरीर में भी ख़ारिश सहन करने से अधिक होने लगी और जब एकदिन जब मैं उनके सामने भी शिष्टाचार की परवाह किए बिना खुजलाने लगा तो उन्होंने मुझे मित्रवत् सलाह देते कहा, “जब देखो, जहाँ देखो, समय, स्थान, देशकाल की परवाह किए बिना हरदम कुत्तों की तरह ख़ारिश करते रहते हो! किसी लैब में अपना ब्लडी ब्लड टैस्ट क्यों नहीं करवा लेते? आदमियों के बीच आदमी को कुत्तों की तरह खुजलाना शोभा देता है क्या?”
“मित्र! ऐसा नहीं कि मैं अपने ब्लड की जाँच करवाने से डरता हूँ। मैं उस देश का नागरिक हूँ जो बड़ी-बड़ी जाँचों में मुजरिम खिला-पिलाकर सफलता से निकल जाया करते हैं। पर असल बात ये है कि . . .” मैंने अपनी पीठ में अपने आप ख़ारिश करते उन्हें बताया तो उन्होंने पूछा, “तो फिर बात क्या है?”
“दोस्त! असल बात ये है कि मैं अपनी कोई भी जाँच करवाने से नहीं डरता। जाँच को आँच क्या! पर जाँच के परिणाम आने से डरता हूँ। अब तुमसे छिपाना क्या! पिछली दफ़ा हुआ यों कि मेरे घुटनों में दर्द हो गया था। तब तुम जैसे ही मेरे एक हितचिंतक ने मुझे सलाह दी कि मैं अपना यूरिक एसिड चेक करवा लूँ। मैं शहर की जानी-मानी लैब में अपना यूरिन टैस्ट करवाने गया। बाद में उसने जो मुझे यूरिन के जाँच की रिपार्ट थमाई तो उसे देख कर वो ही नहीं, मैं भी हैरान हो गया था।”
“क्यों?”
“असल में उसने जो मेरे यूरिन की जाँच की थी उसके हिसाब से मैं गर्भधारण कर चुका था। जब मैंने उससे इस बारे विस्तार से छानबीन की तो पता चला कि उसने मेरी रिपार्ट की जगह उस महिला की रिपोर्ट मेरे नाम कर दी थी जो फ़ैमिली राह पर थी। बस, इसीलिए अब . . .”
“देखो दोस्त! यहाँ आदमी से लेकर ख़ुदा तक हर एक ग़लती का पुतला है। आदमी से तो आदमी से, ग़लती तो ख़ुदा से भी हो जाती है। अगर ख़ुदा से ग़लती न होती तो क्या मैं और तुम जैसे गधे आदमी बन पाते क्या?”
“सो तो सही है पर . . .,” मैंने भगवान की ग़लती की तरह आदमी की भी ग़लती स्वीकारी और अगले दिन एकबार फिर कुत्ते की तरह खुजलाता शहर की जानी-मानी टैस्ट लैब में चला गया अपने ब्लड की जाँच करवाने बिन अवकाश दिए। ज्यों ही मैंने लैब में प्रवेश किया तो लैब वाले ने मेरी ओर सीरिंज तानते पूछा, “कहिए! कहाँ का टैस्ट करवाना है?”
“ब्लडी ब्लड का। इसकी वजह से पूरे बदन में ख़ारिश हो रही है।”
“कोई बात नहीं। अब साइंस ने बेतहाशा तरक़्क़ी कर ली है। केवल एक ब्लड से ही हम हर क़िस्म का टैस्ट कर लेते हैं। दिल से लेकर दिमाग़ तक का।”
“नहीं, मुझे बस, अपनी ख़ारिश का कारण पता करना है।”
“कोई बात नहीं सर!” उसने मेरे शरीर से मुस्कुराते हुए ब्लड निकाला और जेब से पैसे।
“रिपोर्ट लेने कब आऊँ?” मैंने उससे पूछा तो उसने कहा, “कल आ जाइएगा। इसी वक़्त। बुरा न मानों तो लगे हाथ ख़ारिश के साथ-साथ आपके और भी पाँच सात टैस्ट कर दूँ? अस्सी के साथ केवल पचास रुपए लगेंगे एक्सट्रा।”
“मतलब?”
“मरीज़ों के हित में टेस्टों की ऑफ़ सीज़न सेल लगी है। सर! आम के आम, गुठलियों के दाम,” और मैंने मास्टर से ग्रैंड मास्टर होते हामी भर दी।
दूसरे दिन जब मैं अपने ब्लड की जाँच की रिपार्ट लेने वहाँ पहुँचा तो उसका हैरान परेशान चेहरा देखकर हैरान रह गया, “क्या बात है डियर? मुझसे अधिक परेशान तुम दिख रहे हो?”
“जनाब! पेशे से क्या करते हो?” उसने मुझे अबके केवल आँखों से ऊपर से नीचे तक जाँचते पूछा।
“मास्टर हूँ!”
“गुरुजी? कहाँ के?”
“मास्टर तो हर जगह का मूलतः मास्टर ही होता है। वह चाहे कहीं का भी हो? तो मेरे ब्लड की रिपार्ट क्या कहती है?”
“मत पूछो जनाब! पहले तो मैं सोचा था आप किसी खाऊ महकमे में होंगे। पर अब जो आपने मास्टर कहा तो . . .”
“आख़िर बात क्या है जो मेरे पेशे से इतने हैरान हो? मेरे पेशे से मेरे ब्लड का क्या सम्बन्ध? अपने बच्चे को ट्यूशन लगवानी है क्या? करवा दूँगा। केवल क्लास में पढ़े फेल हो जाएँ तो हो जाएँ हों, पर मुझसे ट्यूशन पढ़े आजतक कभी फेल नहीं हुए,” मैंने कमान सा सीना ताना।
“नहीं। देखो मास्टर जी! मैं आपको अँधेरे में रखना नहीं चाहता। असल बात ये है कि आपके ब्लड की जाँच के बाद रिपोर्ट में आया है कि आपमें . . . कि आपमें . . .” कह उसने दो गिलास पानी गटागट पी डाले और एक मेरी ओर बढ़ाया। तो मैंने कहा, “देखो दोस्त! जो भी हो खुल कर कहो।”
“तो मास्टर जी, बात ये है कि आपके ब्लडी ब्लड की जाँच से पता चला है कि आपमें दया, त्याग, क्षमा, नैतिकता, भाईचारे, ईमानदारी, सत्य, निष्ठा का लेवल सामान्य से भी इनता कम है कि इनका आप में होना या न होना कोई मायने नहीं रखता। मतलब, जो जो एक मास्टर साहब के नाते कम से कम आपके ब्लड में होना चाहिए, वह सब न होने से भी बहुत कम है। दूसरी ओर झूठ, फरेब, भेदभाव, बदतमीज़ी, हेराफेरी, बेईमानी रिश्वतखोरी, दुराचार, दगाबाज़ी, बेइंसाफ़ी का लेवल आपके ब्लड की रिपोर्ट के हिसाब से सामान्य से तिगुना है,” उसने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा और मेरी ओर गधा हो ताकने लगा तो मैंने अपने ब्लड की जाँच की रिपोर्ट को लात मारते हुए पूरे दमखम के साथ कहा, “पर मैं तो एक सौ एक प्रतिशत विशुद्ध वैष्णव मास्टर हूँ। दोस्त! कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी दूसरे महकमे वाले के ब्लड की जाँच वाले टैस्ट पर तुमने ग़लती से मेरा नाम लिख दिया हो?”
“नहीं जनाब! यह एक सौ एक प्रतिशत विशुद्ध वैष्णव मास्टर जी के ब्लड के नमूने का ही रिज़ल्ट है।”
“तो इसमें हैरान होने वाली बात क्या है? ये भी तो हो सकता है कि दूसरे महकमे वालों के साथ उठते–बैठते, खाते–पीते ये सब हमारे ब्लडी ब्लड में आ गया हो,” मैंने अपने ब्लडी ब्लड की जाँच की रिपोर्ट की सपोर्ट में तर्क दिया तो उसने मुझे अपने हाथ जोड़े, पौराणिक रीति से मेरे पाँव छुए और अपना पसीना पोंछता बग़ल के ढाबे में चाय पीने चला गया।
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