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कुक्कड़ का राजनीतिक शोक 

 

ज्यों ही सोशल मीडिया पर तैनात जंगल में बैठे लेटे विपक्ष के प्लांटिड कुक्कड़ को अपने पक्ष द्वारा वायरल की कुक्कड़ खाती सरकार की वीडियो हाथ लगी तो वह पागल होकर मोर की तरह नाच उठा। तब वह समझ गया कि आज नौ बजने के बाद भी जंगल में किसी कुक्कड़ ने सुबह होने की सूचना क्यों नहीं दी। 

आनन फ़ानन में उसने अपने अड़ोसी-पड़ोसी कुक्कड़ समुदाय के दिन में भी सोए रहने वाले कुक्कड़ों को हिलाया, जगाया। जब वे सब उसे गालियाँ देते अलसाए जागे तो उसने विपक्ष का धर्म चोरी-छिपे निभाते अगली बार व्यवस्था अपने हाथ आने का सपना देखते कहा, “मित्रो! ख़ासकर कुक्कड़ों के लिए यह समय सोने का समय नहीं है। यह सोए हुए भी सोशल मीडिया पर भी जागे होने का समय है। हमारे परम हितैषियों ने सोशल मीडिया पर एक बहुत ही दुखभरी वीडियो वायरल की है। इस वीडियो को देखकर मेरा तो यही मानना है कि हमें तुरंत जंगल में दो दिन का जंगल शोक घोषित कर देना चाहिए। इस वीडियो में हमारे एक कर्मठ, जुझारू, ईमानदार, कुक्कड़सेवक, कर्त्वयनिष्ठ, शिक्षित, धर्मनिरपेक्ष साथी को निर्ममता से व्यवस्था का आहार होते दिखाया गया है। बंधुओ! ख़ुदा की क़सम! जो यह सोशल मीडिया न होता तो आज को हम क़तई सोशल न रह पाते।”

उसके कहते ही वहाँ उपस्थित सभी कुक्कड़ों ने अपने-अपने एंड्राइड ओपन किए तो देखा कि सचमुच व्यवस्था जी अपने सहयोगियों के साथ एक संरक्षित कुक्कड़ का आनंद उड़ा रहे हैं। बड़ी गंभीरता से अपना चश्मा साफ़ करते यह वीडियो देख बुज़ुर्ग कुक्कड़ ने कहा, “बंधुओ! ये कौन सी नई बात है? कुक्कड़ों से लेकर मुक्कड़ों तक सब व्यवस्था के लिए ही तो संरक्षित होते हैं। उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है, व्यवस्था के पेट चढ़ जाना। पर जहाँ तक मेरी पारखी नज़रें वीडियों में पहचान रही हैं, यह कुक्कड़ अपनी बिरादरी का नहीं। मुझे तो यह कुक्कड़ किसी दूसरी बिरादरी का लगता है। इसलिए हमें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं।”

“जानते नहीं? कुक्कड़ चाहे किसी भी बिरादरी के हों, पर होते वे कुक्कड़ ही हैं। वे चाहे अर्बन कुक्कड़ हों या फिर रूरल। हमारी आजतक सबसे बड़ी ग़लती यही रही है कि हम सब कुक्कड़ होने के बाद भी अलग-अलग बिरादरियों में बँटे रहे। अगर हमने मुसलमान आक्रमणकारियों के समय की तरह अबके एका नहीं दिखाया तो देश के शहरी, ग्रामीण, जंगली कुक्कड़ों का पहले जैसा हाल निश्चित नहीं, सुनिश्चित है, इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले एक इतिहासकार कुक्कड़ ने अपनी इतिहास की समझ बिखेरी।”

“तो??” कुक्कड़ों का बुद्धिजीवी समुदाय चिंता में। 

इसी बीच जिस कुक्कड़ ने सोशल मीडिया पर सबसे पहले व्यवस्था द्वारा खाते कुक्कड़ का वीडियो देखा था, उसने अति गंभीर होकर कहा, “बंधुओ! जहाँ तक मेरी वीडियाई नज़र का प्रश्न है, यह कोई शहर कुक्कड़ नहीं। न ही रूरल कुक्कड़ है। यह हमारे बीच का जंगली कुक्कड़ भाई है। मुझे तो थाली में बचे कुक्कड़ की तस्वीर से भी अपनी जात बिरादरी की बदबू आ रही है। अर्बन कुक्कड़ खाना व्यवस्था का हक़ बनता है, रूरल कुक्कड़ खाना भी व्यवस्था का हक़ बनता है, क्योंकि वे व्यवस्था का दाना खाते हैं। व्यवस्था उन्हें पालती ही अपनी थाली के लिए है, पर हम जंगली कुक्कड़ों ने व्यवस्था का क्या खाया जो वह हमें खाने लग गई?” अचानक प्रमाण के तौर पर कुक्कड़ों के बीच गुपचुप तरीक़े से विपक्ष द्वारा प्लांटिड एक कुक्कड़ कहीं से कुक्कड़ की चूसी पुरानी हड्डियाँ भी ले आया। तब वह उनको दिखाते बोला, “यक़ीन नहीं होता तो ये देख लो अपने भाई की चूसी हड्डियाँ! सूँघो इनको! इनसे हमारे डीएनए की बास न आए तो कहना! पता है, मैं कितनी मुश्किल से व्यवस्था के पेट से इन्हें निकाल कर लाया हूँ? मेरी जगह कोई और होता तो वह भी अबको उसके पेट का शिकार हो चुका होता। उनका बस चलता तो वे एक भी सबूत न छोड़़ते।”

कुक्कड़ों की उन हड्डियों का निरीक्षण दल के कुक्कड़ों ने बहुत ही बारीक़ी से निरीक्षण परीक्षण किया और कुछ देर बाद रिज़ल्ट दे डाला, “बंधुओ! ये किसी दूसरे जीव की नहीं, हैं तो कुक्कड़ की ही व्यवस्था द्वारा चूसी हड्डियाँ। व्यवस्था ने इन्हें इतना चूस दिया है कि अब यह पता करना मुश्किल है कि किस बिरादरी के कुक्कड़ की हड्डियाँ है।”

“तो क्यों न इन्हें अपनी ही बिरादरी की हड्डियाँ मान लिया जाए?” ज्यों ही कुक्कड़ों की सभा में उस कुक्कड़ की हड्डियों को अपनी बिरादरी के कुक्कड़ की हड्डियाँ मान लिया गया तो वहाँ पर इकट्ठे हुए सारे जवान, अधेड़ मर्द, नामर्द, बूढ़े कुक्कड़-कुक्कड़ियाँ एक दम भावविह्वल हो उठे। किसीको भी मज़े से काटो तो चूँ नहीं। तब उन्हें पल भर को तो ऐसा भी फ़ील हुआ ज्यों ये चूसे गए अज्ञात नस्ल के कुक्कड़ की हड्डियाँ न होकर उनकी चूसी हुई हड्डियाँ हों। 

विपक्ष द्वारा कुक्कड़ समुदाय में प्लांटिड गुप्त कुक्कड़ ने मौक़ा उचित समझ चूसी हड्डियों पर इमोशन का गर्म गर्म हथौड़ा दे मारा, “मित्रो! माना! व्यवस्था का सब पर पूरा हक़ होता है। वह जिसे चाहे उसे खा सकती है। वह जिसे चाहे उसे उठा सकती है। वह जिसे चाहे उसे बचा सकती है। वह जिसे चाहे उसे क्लिन चिट दे सकती है। वह जिन गधे शब्दों को चाहे विट दे सकती है। लेकिन यह निरीह कुक्कड़ की नहीं, संविधान की सरेआम हत्या है। लोकतंत्र के विधान की हत्या है। हालाँकि हम ये खुले दिल से स्वीकारते हैं कि ऐसा करना हर व्यवस्था की निजी मामला है। इसमें कोई दख़ल देता भी नहीं। क्यों दे? जो देता है वह सहता है। ऐसे में हम जागरूक जनता की तरह और तो कुछ नहीं कर सकते, पर व्यवस्था के पेट चढ़े कुक्कड़ की आत्मा की शान्ति के लिए कुक्कड़ समाज हित में दो मिनट का शोक तो कर ही सकते हैं। भगवान उपभोगित के परिवार को उसके आकस्मिक भोग पर हुए दुःख को सहने की असीम शक्ति दें। एक हैं तो सेफ़ हैं की तर्ज़ पर कल हम हर बिरादरी के कुक्कड़ व्यवस्था के मुख्यालय के बाहर कुक्कड़ के व्यवस्था उपभोग के विरोध में मेरी अगुआई में प्रदर्शन करेंगे। जनता-कुक्कड़ भाई! भाई!” विपक्षी दल के हेड कुक्कड़ के यह कहते ही उसके दल के एक्टिव कुक्कड़ों ने सिर झुकाया, आँखें आधी बंद कर इधर उधर ये देखा कि कौन-कौन मौन रख रहा है, ताकि पता चल जाए की उनके कुक्कड़ समुदाय के कितने उनके साथ हैं। 

ज्यों ही शोक सभा ख़त्म हुई तो सोशलमीडिया इंफ्लुएंसरों ने उसी वक़्त वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर अपने दायित्व को निभा चैन की साँस ली। 

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