अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ठंडी चाय, तौबा! हाय! 

अपने विश्वास पात्रों से अपनी सरकार बचाने हेतु मंत्री जी फ़्लोर टेस्ट में सफल होने के लिए विपक्ष के बिकने को बेचैन बिकाउओं को ख़रीदने के लिए पार्टी मुख्यालय से अतिरिक्त बजट लाने के लिए पार्टी मुख्यालय बाई एयर निकल रहे थे। उनकी गिरती सरकार का पूरा अफ़सरी अमला उनको एयर पोर्ट पर सी ऑफ़ करने आया था यह सोच कर कि क्या पता, उन्हें अगली बार उनको सी ऑफ़ करने का मौक़ा मिले या न! एयरपोर्ट पर अचानक मंत्री जी का मन चाय पीने का हुआ। अल्पमत में चलते इन दिनों उन्होंने लोकतंत्र का ख़ून पीना फ़िलहाल बंद कर रखा था। 

ज्यों ही मंत्री जी ने अपने सबसे बड़े अफ़सर को सामने के टी स्टाल की ओर इशारा किया तो चौबीसों घंटे उनकी सेवा में लीन रहने वाले आइएएस समझ गए कि मंत्री जी का मन चाय को हो रहा है। मंत्री जी अपनी आँखों के इशारों को समझें या न, पर उनके अधीन अफ़सर उनकी बंद आँखों के इशारे को भी पलक झपकने से पहले ही समझ जाते हैं। 

मंत्री जी की आँखों के इशारे का अनुवाद कर उनके सबसे बड़े अफ़सर ने अपने से नीचे वाले अफ़सर को इशारा किया। नीचे वाला अफ़सर कुछ और समझे या न, पर अपने से ऊपर के अफ़सर की आँखों के इशारे को आँखें बंद होने पर भी पल में समझता है। सफल अफ़सरशाही की सबसे बड़ी विशेषता होती भी यही है। 

अपने से ऊपर वाले अफ़सर के इशारे को पलक झपकने से पहले समझ बिन एक पल गँवाए उनके नीचे वाले अफ़सर ने अपने से नीचे वाले अफ़सर को चाय के स्टाल की ओर इशारा किया तो इशारों की लड़ी बन गई। 

देखते ही देखते इशारों ही इशारों में यह बात सबसे नीचे वाले अफ़सर तक पहुँच गई कि मंत्री जी चाय पीना चाहते हैं। फिर पता नहीं क्यों, पता होने के बाद भी सबसे नीचे वाले अफ़सर ने अपने से नीचे की ओर देखा। पर उनके नीचे कोई अफ़सर न था। वही सबसे नीचे वाले अफ़सर थे तो उन्होंने अपने को गालियाँ देते, अपने दिमाग़ का पीसना पोंछते चाय के स्टाल की ओर सिंकदर की तरह कूच किया और आनन-फ़ानन में वे चाय वाले को मंत्री जी के साथ अपने अटैच होने का रौब दिखा, उससे मंत्री जी टाइप चाय बनवा, मंत्री जी की चाय का गिलास सिर-आँखों पर उठा ले आए। चाय वाले ने लोकतंत्र में तय हिसाब से मंत्री जी की चाय में मिर्च-मसाला डाल, मंत्री जी को अपने फोटो छपे गिलास में अपने प्रचार के लिए फ़्री की चाय डाली और एयरपोर्ट पर हर एक को ठगने वाले ने स्वर्ग में अपनी सीट पक्की कराई। 

सबसे नीचे के अफ़सर जी ने ऑफ़िसर प्रोटोकॉल का पूरा पालन करते सिर-आँखों पर चाय का गिलास उठाया और अपने से ऊपर के अफ़सर की ओर मुस्कुराते हुए लपके। अपने से नीचे के अफ़सर से चाय का गिलास लेकर उन्होंने अपने से ऊपर के अफ़सर को मुस्कुराते हुए चाय का गिलास सौंपा। फिर उन्होंने अपने से नीचे के अफ़सर से चाय का गिलास लेकर अपने से ऊपर के अफ़सर को सादर सौंप दिया। 

इस तरह दस नीचे के अफ़सरों के हाथों से गुजरने के बाद चाय का गिलास सबसे बड़े अफ़सर के पास पहुँचा। सबसे बड़े अफ़सर ने चाय का गिलास सूँघा। उन्होंने चाय को सूँघने के बाद मुस्कुराते हुए, इठलाते हुए ख़ास तरह की चमाचगिरी की साँस ली। 

अब पक्का हो गया कि चाय के गिलास में चाय ही थी। 

फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए चाय के गिलास को मंत्री जी के सामने वैसे ही पेश किया जैसे रामलीला के दौरान मेरे गाँव के मंच पर रावण के सामने उसकी डिमांड पर नाचने वाली पेश होती थी। मंत्री जी ने चाय को गटकने से पहले विपक्ष के बागियों की तरह चाय को चेक किया। पर यह क्या! चाय ठंडी! मंत्रीजी ने चाय के गिलास में अपनी एक उँगली डाली तो उँगली ने कहा, “हुज़ूर! चाय ठंडी है।”

मंत्री जी को अपनी उस उँगली पर विश्वास न हुआ। उन्होंने चाय की गरमाहट चेक करने के लिए अपनी दूसरी उँगली चाय के गिलास में डाली। उसने भी पहली वाली उँगली की ही तरह चाय के बारे में रिपोर्ट दी। करते-करते उन्होंने अपनी और अपने ख़ास अफ़सर की सारी उँगलियाँ चाय के गिलास में बारी-बारी डालीं। पर रिपोर्ट पहले की उँगली वाली ही रही तो मंत्रीजी ने अपने सबसे बड़े अफ़सर से पूछा, “ये क्या है? आजकल पानी तो ठंडा तक फूँक-फूँक कर पी रहा हूँ, पर अब क्या ठंडी चाय भी फूँक-फूँक कर पीनी पड़ेगी?” 

मंत्री जी को चाय के गिलास पर ग़ुस्सा होते देखते ही ऊपर से नीचे तक हर अफ़सर के पीसने छूटने लगे। देखते ही देखते हर अफ़सर अपने से नीचे वाले अफ़सर पर ग़ुस्सा होने लगा। तब सबसे ऊपर के अफ़सर ने लाल-पीले होते अपने से नीचे वाले अफ़सर को अविलंब कारण बताओ नोटिस आँखों ही आँखों में जारी कर दिया। उनसे नीचे वाले ने तत्काल सारे दूसरे काम छोड़ चाय ठंडी होने का वह कारण बताओ नोटिस अपने से ऊपर वाले अफ़सर से पाकर अपने से नीचे वाले अफ़सर को जारी कर दिया। 

जिस तरह चाय का गिलास मंत्री जी तक गया था, ठीक उसी तरह चाय ठंडी होने का कारण बताओ नोटिस सबसे नीचे वाले अफ़सर के पास आ गया। अपने से नीचे कोई न होने का पता होने के बाद भी सबसे नीचे वाले अफ़सर ने अपने नीचे देखा। उनके नीचे उस वक़्त भी सचमुच कोई न था तो उनके हाथ पाँव फूले। साला! सबसे नीचे का अफ़सर होना भी पल-पल मरने से कम नहीं होता। हरदम कारण बताओ नोटिस सिर पर गिद्ध की तरह मँडराता रहता है। 

घर में बात-बात पर जब-जब वे अपनी बीवी द्वारा कारण अकारण जारी कारण बताओ नोटिस मिलने पर बात बेबात ‘शोकॉज नोटिस’ चालीसा पढ़ते थे तब-तब उन्हें कारण अकारण शोकॉज नोटिस के भय से अपार मुक्ति मिलती थी। अबके भी जब वे इस कारण बताओ नोटिस से नजात पाने के लिए पालथी मार आँखें मूँदे बात बेबात ‘शोकॉज नोटिस’ चालीसा का जाप करने लगे कि तभी एक बार फिर करिश्मा हुआ। 

अब देखिए इस बात बेबात ‘शोकॉज नोटिस’ चालीसा का असर कि अचानक समय की बचत के लिए मंत्री जी हवाई जहाज़ के बदले जल्दबाज़ी में टैक्सी में जा चढ़े तो उधर सबसे ऊपर के अफ़सर से लेकर सबसे नीचे के अफ़सर की जान में जान आई और अकारण ठंडी चाय के कारण बताओ नोटिस से मुक्ति मिलते ही तमाम अफ़सर भय के भवसागर पार हुए। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

पुस्तक समीक्षा

कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. मेवामय यह देश हमारा