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सजना है मुझे! हिंदी के लिए

उस दिन मैं ब्यूटी पार्लर में अपनी पूँछ के हेयरों की हेयर कटिंग, सैटिंग के साथ साथ हेयर स्टाइलिंग, हेयर पुफ़्फ़िंग, पूँछ स्पा करवाने गया था। बड़े दिनों से ख़ुद को भी लग रहा था जैसे मेरी पूँछ बू मार रही है। दिमाग़ तो मेरा बहुधा बदबू मारता ही रहता है। 

साहब को ही क्या, उसके बाल मुझे ख़ुद को भी कुछ अटपटे से लग रहे थे। साहब ने भी इशारे ही इशारे में इस ओर संकेत भी किया था कि बंधु! मुझे पटाए रखना चाहते हो तो तनिक ध्यान अपनी पूँछ के सौंदर्य पर भी दो। आजकल पूँछ सौंदर्यहीन होती जा रही है। साहब को अपने अधीनस्थ का सब कुछ अच्छा लगता है, पर सौंदर्यहीन पूँछ क़तई नहीं। 

मित्रो! अगर आप मुझसे जानते हुए भी यह सवाल पूछेंगे कि मैं यह पूँछ क्यों रखता हूँ? तो आपके उत्तर जानते हुए भी मेरा सीधा सा उत्तर होगा—साहब के लिए। अगर सिस्टम में साहब जाति का जीव न होता तो मैं पूँछ तो छोड़िए, पूँछ का एक बाल भी न रखता। केवल और केवल मूँछ ही रखता। पर क्या करें! पूँछों के युग में मूँछों का क्या काम! इसीलिए जिधर देखो, आजकल मूँछों की जगह बंदों के पास एक से एक शालीन पूँछें शोभायामान हैं। 

अभी मैं अपनी पूँछ के बालों की कटिंग करवाने के बाद उसके हेयरों की हेयर पुफ़्फ़िंग करवा रहा था कि मुझे हिंदी मॉम जी आती दिखीं। बड़े दिनों बाद क्या, साल बाद ही उनके दर्शन हुए होंगे मेरे हिसाब से तो। 

हिंदी मॉम जी ब्यूटी पार्लर में! ब्यूटी पार्लर तो अँग्रेज़ी मॉमों, मेमों, मैमों का होता है। वे आठ पहर में से सात पहर ब्यूटी पार्लरों में ही जमी रहती हैं। होगा कोई इनके घर फ़ंक्शन-फ़ुंक्शन! तभी आई होगी सजने-सँवरने। 

ब्यूटी पार्लर के काउंटर पर बैठे लड़कियों से बालों वाले छोकरे ने उन्हें देखकर भी इग्नोर किया तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आया। हिंदुस्तानी ब्यूटी पार्लर में हिंदी मॉम जी का अपमान! 

हद है यार! रोटी कपड़े मकान पर सबका हक़ हो या न, पर सौंदर्य पर तो सबका हक़ है कि नहीं? क्या हिंदी! क्या अँग्रेज़ी! ग्राहक तो ग्राहक होता है जनाब! इसका भी गला काटना तो उसका भी गला काटना। हिंदी मॉम जी के बदले अँग्रेज़ी मॉम का गला क्या काटने को नरम होता है जो . . .। 

हिंदी मॉम जी ने काउंटर वाले लड़के को नमस्कार के बदले हैलो, हाय किया तो यकायक काउंटर वाले लड़के ने बुरा सा मुँह बनाते नज़रें उनकी ओर मुड़ीं, “ओ नो! हिंदी मॉम जी यू! गुडमार्निंग मॉम जी! बड़े दिनों बाद आईं आप? कैसे याद आई हमारे ब्यूटी पार्लर की मॉम जी आपको आज?” 

“सोच रही हूँ मैं भी . . . ” कहते कहते हिंदी मॉम जी सामने सजे एक से एक आयातित सौंदर्य प्रसाधनों को ग़ौर से निरखती परखती रीतिकालीन नायिका की तरह पता नहीं क्या गुनगुनाने लगीं। 

“क्या कोई फ़ंक्शन है घर में मॉम जी?” 

“हाँ! फ़ंक्शन-सा ही है कुछ। बस, उसी के लिए . . .”

“तो क्या क्या करवाना है आपको हिंदी मॉम जी?” 

“हेयरकटिंग, हेयर पुफ़्फ़िंग, हेयर स्टाइलिंग, हेयर स्ट्रेट, हेयर डायिंग, हेयर स्पा हेयर रिबॉन्डिंग, आई ब्रो, मेनिक्योर, ब्लीचिंग, विश्व सुंदरी मेकअप, फ़ेस मसाज, हेड मसाज, फूल बॉडी मसाज, वैक्सिंग, हेयर रिमूविंग, फ़ेशियल, पेडिक्योर सब करवाना है। सब कितने के? और हाँ! ये लिस्ट का सामान भी मिल जाएगा न?” 

“क्या हिंदी मॉम जी?” हिंदी मॉम जी ने अपने रूखे बाल झटकते कहा तो काउंटर वाला लड़का परेशान! 

“यही बस, आइकोनिक काजल, आइलाइनर, मसकारा, आइशेडो, आइ प्राइमर, नेल पेंट, मेकअप रिमूवर, सिंदूर बिंदी, फ़ॉउंडेशन, हाइलाइटर, ब्लश, लहंगा-चोली, साड़ी-वाड़ी, आर्टिफ़िशियल डायमंड सेट, लिपस्टिक, मेकअप सेटिंग सप्रे, फ़ेसकांपैक्ट . . . बस, यही थोड़ा बहुत . . .” हिंदी मॉम जी ने झल्लाते हाथ में पकड़ी लिस्ट पढ़ने के बाद पर्स में डालते ब्यूटी पार्लर में इधर-उधर नज़रें दौड़ाते कहा तो काउंटर पर लड़कियों के स्टाइल में बैठे लड़के के ही सिर के खड़े बाल और खड़े न हुए बल्कि इधर-उधर जिन कुर्सियों पर जो जो सज रहे थे उनको सजाने वालों के बाल भी खड़े हो गए। वे अपनी कुर्सी पर बैठे ग्राहकों को छोड़ हिंदी मॉम जी की ओर लपके तो मैं परेशान। मेरी आधी ही पूँछ स्ट्रेट हुई हुई। हद है यार! 

तब मैं अपनी आधी अधूरी स्ट्रेट पूँछ लिए ही हिंदी मॉम जी के पास जा पहुँचा घिघियाता हुआ। तब मैंने दोनों हाथ एक पूँछ जोड़े विनीत भाव हिंदी मॉम जी से पूछा, “धृष्टता माफ़ हो हिंदी मॉम जी! पर ये रीतिकालीन नायिका की तरह शृंगार? अब तो न यहाँ आपके सौंदर्य का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन करने वाले कोई बिहारी हैं न मतिराम। साहित्य में घोर यथार्थवाद का काल चल रहा है। साहित्य के नाम पर उल्टी करने वाला लिखा जा रहा है। फिर ये सब किसलिए?” 

“बस, हिंदी डे के लिए,” हिंदी मॉम जी ने मेरी ओर पीठ फेर कहने के बाद काउंटर वाले से पूछा, “तो कब आऊँ डियर?” 

“मॉम जी! आपके लिए तो पूरा ब्यूटी पार्लर ख़ाली ही ख़ाली है मॉम! साल बाद तो आप आई हैं। आपको ऐसा ब्यूटियाएँगे . . . ऐसा ब्यूटियाएँगे कि . . . साहब! आप कल आइएगा अपनी बची पूँछ स्ट्रेट करवाने। और हाँ हिंदी मॉमजी! वहाँ उस वाली चेयर पर विराजिएगा आप जी।”

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