जनतंत्र द्रुत प्रगति पर है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. अशोक गौतम15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
जनतंत्र ऐन चुनाव के दिन सामान और सम्मान के दिन होते हैं। हर टाइप का नास्तिक से नास्तिक समाज सेवक इन दिनों इतना दानी हो जाता है कि उसकी दानवीरता को देख उल्टियाँ लग जाती हैं।
चुनाव आते ही चुनावी दानियों की परंपरा का वहन करते वे भी इन दिनों दानी हो चले हैं, सम्मानी हो चले हैं। जहाँ भी जा रहे हैं, सबको दिल खोलकर सामान दे रहे हैं, सम्मान दे रहे हैं, जो-जो जनता चाहती। हर क़िस्म के समाज सेवक के पास भले ही ईमानदारी की कमी हो, पर चुनाव के दिनों में उसके पास सम्मान, सामान की कोई कमी नहीं होती। वह एक नहीं, हज़ार-हज़ार हाथों से दिल खोलकर इधर-उधर ,जहाँ-जहाँ वोट देने वाले मिलें, सामान बाँटता है, सम्मान बाँटता है।
जहाँ-जहाँ उन्हें लगता है कि सामान बाँटने से वहाँ वोट मिल जाएँगे वहाँ वे सामान बाँट रहे हैं। जहाँ उन्हें लगता है कि यहाँ सामान बाँटने से वोट नहीं बनेगा तो वहाँ वे सम्मान बाँट रहे हैं। वे जानते हैं कि सामान का हर कोई भूखा हो या न, पर सम्मान का सम्मानी तक भूखा होता है। भले ही वोटर चुनाव से पहले रूखी-सूखी खाकर पर्व मनाता रहा हो, पर स्वस्थ से स्वस्थ लोकतंत्र का वोटर, चुनाव के दिनों सामान और सम्मान की बहुत भूखा हो जाता है। लालची कहीं का! यह जानते हुए भी कि लालच का फल बुरा होता है।
सामान, सम्मान बाँटते-बाँटते उन्होंने वोटरों की संख्या को निरखते-परखते हर तबक़े की हर लाइन से ऊपर-नीचे की महिलाओं को सम्मान बाँटने के नेक चुनावी इरादे के तहत ‘महिला बहना मंच’ पर महिला बहनों से अपने गले में मालाएँ डलवाईं, उनके गले में मालाएँ डालीं और फिर सीना तानकर घोषणा की, “हे मेरे देश की तमाम वर्ग की महिला बहनो! हमारी सरकार आने पर हम तमाम तरह की महिला बहनों का सम्मान करते उन्हें हर मास पाँच हज़ार रुपए सम्मान रूप में देंगे ताकि तमाम तरह की हमारी बहन महिलाओं को किसीकी जेब बात-बात पर न ताकनी पड़े। हम जानते हैं कि हमारी महिला बहनों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश की बहुत सेवा की है। पर हर सरकार ने उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। ऐसे में अब हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हमारी सरकार बनते ही हम अपनी महिला बहनों को हर मास उनके दो हज़ार के बदले पाँच हज़ार रुपए देश के प्रति उनकी सेवा को देखते हुए ख़ुशी-ख़ुशी दें। विपक्ष सुन ले! ये महिला बहनों के लिए वेतन नहीं होगा, उनके लिए हमारी सरकार की ओर से मात्र सम्मान होगा ताकि महिला बहनें समाज में बेहतर जीवन जी सकें। हम जानते हैं कि उनके सम्मान में ही हमारा सामान निहित है। अतः हम इस महिला मंच से घोषणा करते हैं कि हमारी सरकार सत्ता में आते ही हम हर क़िस्म के परिवार की महिला बहन को पाँच हज़ार रुपए प्रति माह सम्मान रूप में देंगे ताकि वे भी समाज में सबकी तरह सिर उठा कर जीते हुए समाज के उत्थान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का फल पा सकें।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
उन्होंने वोटरों की संख्या को देखते हुए उसके बाद महिला बहनों के पति भाइयों को सम्मान बाँटते पति मंच से पति भाइयों से अपने गले में मालाएँ डलवाते, उनके गले में मालाएँ डालते घोषणा की, “हे मेरे देश के पति भाइयो! हमारी सरकार आने पर इस मंच से घोषणा करते हैं कि देश के तमाम पति भाइयों का सम्मान करते हम उन्हें हर मास दस हज़ार रुपए सम्मान के रूप में देंगे। उन्हें आता हो या न, पर हमें अपने पति भाइयों का सम्मान करना ख़ूब आता है। हम जानते हैं कि हर टाइप के पति भाइयों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश की बहुत सेवा की है, पर हर सरकार ने उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। ऐसे में हमारा उनका नैतिक दायित्व बनता है कि हमारी सरकार बनते ही हम बिना किसी वर्ग भेद के तमाम पति भाइयों के चरणों में हर मास दस हज़ार रुपए देश के प्रति उनकी सेवा को लेकर न्योछावर करें। ये पति भाइयों के लिए वेतन नहीं होगा, उनके लिए उनकी प्यारी सरकार की ओर से मात्र सम्मान होगा ताकि पति भाई समाज में बेहतर जीवन जी सकें। अतः अपने सम्मान की परवाह न करते हुए वे आज इस मंच से सहर्ष घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार सत्ता में आते ही वे हर परिवार के पतित से पतित पति भाई को दस हज़ार रुपए प्रति माह सम्मान राशि के रूप में देंगे ताकि वे भी समाज में सबके सिरों की तरह सिर उठा कर जीते हुए समाज के उत्थान में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
उन्होंने वोटरों की संख्या को देखते हुए युवा बेरोज़गारों को सम्मान बाँटते शिक्षित बेरोज़गार मंच से शिक्षित बेरोज़गारों से अपने गले में मालाएँ डलवाते, उनके गले में मालाएँ डालते घोषणा की, “हे मेरे देश के उनके समय से बेरोज़गार चल रहे हमारे शिक्षित बेरोज़गार युवाओ! इनकी उनकी सरकार ने भले ही आजतक आपको रोज़गार के नाम पर ठगा हो, पर अब हम आ गए हैं। हमारी सरकार आने पर हम देश के अपने तमाम शिक्षित बेरोज़गार बच्चों का सम्मान करते उन्हें हर मास दस हज़ार रुपए सम्मान के रूप में देंगे ताकि उनको मौज-मस्ती के लिए किसीसे खरी खोटी न सुननी पड़े। हम जानते हैं कि हर टाइप के शिक्षित बेरोज़गार ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश की बहुत सेवा की है, पर हर सरकार ने उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। उनको केवल यूज़ किया। सरकारों ने ही नहीं, सच कहें तो उनके अभिभावकों ने भी उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। ऐसे में अब हमारी सरकार आने पर हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हमारी सरकार बनते ही हम तमाम शिक्षित बेरोज़गार युवाओं को हर मास दस हज़ार रुपए देश के प्रति उनकी सेवा को लेकर दें। ये हमारे शिक्षित बेरोज़गारों के लिए वेतन नहीं होगा, उनके लिए उनकी सरकार की ओर से मात्र सम्मान होगा ताकि वे समाज में बिना रोज़गार के भी बेहतर जीवन जी सकें। अतः अपने सम्मान की परवाह न करते हुए वे आज शिक्षित बेरोज़गार मंच से सहर्ष घोषणा करते हैं कि हमारी सरकार सत्ता में आते ही हम हर परिवार के हर शिक्षित बेरोज़गार को दस हज़ार रुपए प्रति माह सम्मान राशि के रूप में देंगे ताकि वे किसीके भी आगे शर्म से सिर झुका कर नहीं, सिर उठा कर जीते हुए समाज के उत्थान में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
उन्होंने बुज़ुर्ग वोटरों की संख्या को देखते हुए बुज़ुर्गों को सम्मान बाँटते बुज़ुर्ग मंच से बुज़ुर्गों से अपने गले में मालाएँ डलवाते, उनके गले में मालाएँ डालते घोषणा की, “हे मेरे देश हर वर्ग की बुज़ुर्ग माताओ और पिताओ! हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हमारी सरकार आने पर हम देश की तमाम बुज़ुर्ग माताओं-पिताओं, चाचा-चाचियों, मामा-मामियों का सम्मान करते उन्हें हर मास पाँच हज़ार रुपए सम्मान के रूप में देंगे ताकि उनको भी अपनी जेब में पैसे दिखें। जो उनका मन खाने को करे, वे खाएँ। जो उनका मन पहनने को करे, वे पहनें। अपने सम्मान की परवाह किए बग़ैर हम जानते हैं कि हर टाइप के बुज़ुर्गों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश की बहुत सेवा की है। पर हर सरकार ने उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। ऐसे में अब हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हमारी सरकार बनते ही हम तमाम बुज़ुर्गों को हर मास पाँच हज़ार रुपए देश के प्रति उनकी सेवा का सम्मान करें। ये बुज़ुर्गों के लिए वेतन नहीं होगा, उनके लिए उनकी सरकार की ओर से मात्र सम्मान होगा ताकि वे समाज में बेहतर जीवन जी सकें। अतः वे आज इस मंच से घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार सत्ता में आते ही वे हर परिवार के हर बुज़ुर्ग को पाँच हज़ार रुपए प्रति माह सम्मान राशि के रूप में देंगे ताकि वे सिर झुका कर नहीं, सिर उठा कर जीते हुए समाज के उत्थान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहें।”
तालियाँ! तालियाँ!! तालियाँ!
उन्होंने उनसे उनके भगवान छीनते हुए भगवान के वोटरों की संख्या को देखते भगवान को सम्मान बाँटते सबके भगवानों को एक मंच पर इकट्ठा कर भगवानों से अपने गले में मालाएँ डलवाते, उनके गले में मालाएँ डालते घोषणा की, “हे मेरे देश कीे तमाम जनता के भगवानो! हम इस मंच से आपको साक्षी मानकर घोषणा करते हैं कि हमारी सरकार आने पर हम देश के तमाम भगवानों का सम्मान करते उन्हें हर मास बीस हज़ार रुपए सम्मान के रूप में देंगे ताकि उनको खाने पीने के लिए परेशान न होना पड़े। अपने सम्मान से पहले हम जानते हैं कि भगवान को जो उनके भक्त देते हैं, उसका उनको दशांश भी नहीं मिलता। शेम! शेम! शेम! बुरा न मानना, आपका हिस्सा आज तक सरकारें खाती रही। पर अब न होगा। हमें पता है कि हर टाइप के भगवान ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश की बहुत सेवा की है। पर हर सरकार ने उनकी सेवाओं को अनदेखा किया। ऐसे में अब हमारी सरकार का नैतिक दायित्व बनता है कि हमारी सरकार बनते ही हम तमाम भगवानों को हर मास बीस हज़ार रुपए धर्म के प्रति उनकी सेवा को लेकर दें। ये भगवानों के लिए वेतन नहीं होगा, उनके लिए हमारी सरकार की ओर से मात्र सम्मान होगा ताकि वे भी सबकी तरह समाज में बेहतर जीवन जी सकें। अतः वे आज इस मंच से घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार सत्ता में आते ही वे हर समाज के हर भगवान को बीस हज़ार रुपए प्रति माह सम्मान राशि के रूप में देंगे ताकि हमारी सरकार आने के बाद वे भी समाज सिर उठा कर जीते हुए समाज के धार्मिक उत्थान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका और भी जोश के साथ निभा सकें।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
“यही नहीं, हमारी यह सम्मान योजना सफल रही तो हमारी तो यहाँ तक योजना है कि जो हमारी सरकार सत्ता में आई तो वे इस मंच पर शपथ लेते ही समाज में तमाम गीदड़ों के सम्मान के लिए गीदड़ सम्मान योजना लागू करेंगे। वे जानते हैं गीदड़ समाज के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए समाज में उनका हर हाल में सम्मान होना चाहिए, जो पिछली सरकारों ने बिल्कुल नहीं किया। वे केवल अपनों के ही सम्मान में लगी रहीं।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
“यही नहीं, हमारी तो यहाँ तक योजना है कि जो हमारी सरकार सत्ता में आई तो वे इस मंच से यह भी शपथ लेते हैं कि वे कुर्सी की शपथ लेते ही समाज में तमाम सियारों के सम्मान के लिए सियार सम्मान योजना लागू करेंगे। वे जानते हैं सियार समाज के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए समाज में उनका हर हाल में सम्मान होना चाहिए, जो पिछली सरकारों ने बिल्कुल नहीं किया। वे केवल अपनों के ही सम्मान में लगी रहीं।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
“यही नहीं, उनकी तो यहाँ तक योजना है कि जो उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वे इस मंच से यह भी शपथ लेते हैं कि कुर्सी पर बैठते ही वे समाज के तमाम गधों के सम्मान के लिए गधा सम्मान योजना लागू करेंगे। वे जानते हैं गधे समाज के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए समाज में उनका हर हाल में सम्मान होना चाहिए, जो पिछली सरकारों ने बिल्कुल नहीं किया। वे केवल अपनों के ही सम्मान में लगी रहीं।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
“यही नहीं, उनकी तो यहाँ तक योजना है कि जो उनकी सरकार सत्ता में आई तो वे शपथ लेते ही समाज के तमाम भेड़ियों के सम्मान के लिए भेड़िया सम्मान योजना लागू करेंगे। वे जानते हैं भेड़िए समाज के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। इसलिए समाज में उनका हर हाल में सम्मान होना चाहिए, जो पिछली सरकारों ने बिल्कुल नहीं किया। वे केवल अपनों ही सम्मान में लगी रहीं।”
तालियाँ! तालियाँ! तालियाँ!
“यही नहीं, उनकी तो यहाँ तक योजना है कि जो उनकी सरकार पॉवर में आई तो वे शपथ लेते ही समाज के तमाम सफ़ेद हाथियों के सम्मान के लिए सफ़ेद हाथी सम्मान योजना लागू करेंगे। वे जानते हैं सफ़ेद हाथी किसी भी समाज के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। इसलिए और किसीका हो या न, पर समाज में उनका हर हाल में सम्मान होना चाहिए, जो पिछली सरकारों ने बिल्कुल नहीं किया। वे केवल अपने और अपनों के ही सम्मान में लगी रहीं।”
तालियाँ! तालियाँ! ज़ोरदार तालियाँ! जय देश! जय लोकतंत्र!
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