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पधारो म्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम 

 

हे मेरी तरह के रिटायरमेंट का नरक भोगते बंधुओ! अंत्याक्षरी खेलने के दिन तो अब गए। अब तो खेल ऐसे ऐसे कि हर खेल पर दम निकले। रिटायर होने के बाद कई दिनों तक रिटायरमेंट का शोक मनाता घर में पड़ा रहा तो एक दिन बीवी ने लताड़ा, “ऑफ़िस की तरह क्या घर में भी सारा दिन अजगर की तरह पडे़ रहते हो? कुछ काम करो तो वेतन में तनिक उठान आए,” पहले की तरह अबके फिर बीवी की बात सिर माथे। सो मन किया अपना न सही तो नहीं, पर कम से कम बीवी का मान रखने के लिए ही सही, क्यों न कोई स्टार्टअप शुरू कर किया जाए। 

और मैं बीवी की लताड़ खा अपने मुहल्ले के बिज़नेस आइडियों की खान वालों से जा मिला। वे चलती फिरती बिज़नेस आइडियों की कमाल कान्वेंट पाठशाला हैं। या कि आप उनको लेकर ऐसा भी कह सकते हैं कि वे बिकाऊ आइडियों की खान हैं। ऐसी खान कि जिसे सरकार भी बंद नहीं करवा सकती। जितनी मर्ज़ी उसे खोदते जाओ, उसमें से एक से एक बिकाऊ आइडिए निकालते जाओ। न खान के गिरने का डर, न उसके नीचे दबकर मरने का डर। 

जिस तरह हर सत्ताधारी नेता अपनी शरण में तबादले को लेकर आए हर सरकारी कर्मचारी को डीओ लेटर देकर निराश नहीं करता उसी तरह वे भी अपनी शरण में आए को उसकी हैसियत के अनुरूप बिकाऊ आइडिया देकर निराश नहीं करते। वह चले तो उसकी क़िस्मत! न चले तो उसकी बदनसीबी! 

“कहो, रिटायरमेंट के बाद भी अब क्या चाहिए?” 

“गुरुदेव! कुर्सी पर तो डट कर बिका, पर अब बीवी का मन रखने के लिए एक बिकाऊ आइडिया चाहिए जो सच्ची को बिकाऊ हो। ऐसा बिकाऊ कि जिसके बाज़ार में उतरते ही वारे-न्यारे हो जाएँ। पेंशन से चार गुणा इनकम बढ़ जाए,” मेरे कहने पर वे कुछ देर आँखें मूँदे रहे। कुछ देर बाद अपनी आँखें खोलीं तो मेरी बंद होने लगीं, “तो मोबाइल नशा मुक्ति धाम खोल लो। घर में ही ग्राहक!” 

“गुरुदेव! नशा मुक्ति धाम तो सुना था, पर अब मोबाइल नशा मुक्ति धाम?” 

“हाँ!” 

“चार दिनों में ही तुम्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम की ब्राँचें घर-घर न खुल जाएँ तो कहना।”

“मतलब?” बंदा ऐसे ही ग्रेट नहीं हो जाता। ग्रेट होने के लिए बहुत आइडिए बेलने पड़ते हैं। 

उनके मुँह से ख़ालिस नया आइडिया सुन मेरा मुँह खुला का खुला। शुक्र है आसपास कहीं शौच न था। वर्ना मुँह में मक्खी जाते देर न लगती। जब मेरा मुँह खुला रहा तो वे मेरा मुँह बंद कराते बोले, “देखो स्टार्टअपिए! आज शराब से अधिक नशा मोबाइल में है। अफ़ीम से अधिक नशा मोबाइल में है। हेरोइन से अधिक नशा मोबाइल में है। कोकेन से अधिक नशा मोबाइल में है। चरस से अधिक नशा मोबाइल में है। गाँजा से अधिक नशा मोबाइल में है। गए दिन जब बीड़ी सिगरेट को नशा माना जाता था।” 

“मतलब??” 

“मतलब ये कि मोबाइल का नशा आज सब नशों का बाप है। आज मोबाइल की नशेड़ी बीवी पति के गुम हो जाने पर अपने पति को नहीं ढूँढ़ती, अपने मोबाइल को ढूँढ़ती है। आज मोबाइल का नशेड़ी अपनी बीवी के गुम हो जाने पर पति अपनी पत्नी को नहीं ढूँढ़ता, अपनी जेब में अपने मोबाइल को ढूँढ़ता है। आज मोबाइल की नशेड़ी बेटा अपने बाप के गुम हो जाने पर अपने बाप को नहीं ढूँढ़ता, अपने जेब में रखे मोबाइल को ढूँढ़ता है। देखते नहीं! आज मोबाइल का नशेड़ी कैसे एक हाथ से बाइक चलाते हुए दूसरे हाथ से कान में मोबाइल लगाए रखता है। एक्सिडेंट हो जाए तो हो जाए। देखते नहीं, आज मोबाइल का नशेड़ी कैसे गाड़ी चलाते हुए भी मोबाइल को कैसे कान से लगाए रखता है। एक्सिडेंट हो जाए तो हो जाए। उसे मरना स्वीकार है, पर मोबाइल छोड़़ना नहीं। देखते नहीं, आज मोबाइल का नशेड़ी अपनी तो अपनी, पब्लिक टॉइलट् तक में शौच करते हुए भी कैसे मोबाइल को कान से लगाए घंटों आराम से बैठा रहता रहता है। देखते नहीं, आज मोबाइल का नशेड़ी रोटी खाते हुए भी कैसे मोबाइल को कान से लगाए रखता है। रोटी मुँह के बदले नाक को जाए तो जाए। आज का जीव मोबाइल का इतना नशेड़ी हो गया है कि उसे प्यास लगने पर पानी न मिले तो फिर भी वह जीवित रहेगा। भूख लगने पर उसे रोटी न भी मिले तो भी वह चलेगा, क्योंकि मोबाइल उसके साथ में है तो उसे रोटी की चिंता नहीं। आज हर वर्ग का जीव हवा के बिना मज़े से जी सकता है, पर मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं। इस नशे के चलते पूरा परिवार एक छत के नीचे रहते हुए भी एक छत के नीचे नहीं। इसलिए आज जूतों का शोरूम खोलने में उतनी कमाई नहीं जितनी मोबाइल मुक्ति धाम खोलने में है। इस मोबाइल के नशे की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि जीव पैदा होने से पहले ही इसका आदी हो जाता है। शिशु माँ के गर्भ से जन्म लेने से पहले ही गिफ़्ट में मोबाइल चाहता है। वह पैदा होते ही अपनी माँ से दूध नहीं माँगता, बाप से महँगे से महँगा मोबाइल माँगता है। अब तो मरता हुआ जीव भी पंचरत्न नहीं माँगता, मोबाइल माँगता है। सारे नशे समाज में चोरी छिपे होते हैं, पर मोबाइल का नशा सबके सामने होता है, शान से होता है। मोबाइल के नशे वाले को समाज में सम्मान दिया जाता है। जिसको जितने महँगे मोबाइल का नशा, वह समाज में उतना ही आदरणीय। और सबसे बड़ी बात! इसके लिए नशेड़ी कहीं से लाने की ज़रूरत नहीं। घर में ही मिल जाएँगे। मोबाइल नशा मुक्ति धाम खुलने पर बेटा बाप को बिन बताए बाप की मोबाइली हरकतों से तंग आकर बाप का मोबाइल नशा मुक्ति धाम में एडमिशन करवाएगा तो बाप बेटे की। पत्नी पति की मोबाइली हरकतों से तंग आकर पति का मोबाइल नशा मुक्ति धाम में इलाज करवाने लाएगी तो पति पत्नी को। ऐसे में बस, एक बार जो मोबाइल नशा मुक्ति धाम खुल गया तो तमाम धामों के कपाट बंद समझो! सारे रोगी तुम्हारे नशा मुक्ति धाम में। फिर जैसे मन करे वैसे नोट कमाओ। और ऊपर से जन कल्याण का ठप्पा अलग।” 

मित्रो! कल ब्रह्म मुहूर्त में मेरे घर मोबाइल नशा मुक्ति धाम का उद्घाटन मेरी बीवी के कर कमलों द्वारा हो रहा है। और मज़े की बात! इस मोबाइल नशा मुक्ति धाम में मेरी एडमिशन के लिए मेरी बीवी ने तो बीवी की एडमिशन के लिए मैंने एडवांस में फार्म भी भर दिया है। 

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