पुल के उठाले में नेता जी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. अशोक गौतम15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
इधर अचानक मस्त-मस्त महीना पहले उद्घाटित हुआ पुल दिवंगत हुआ तो गाँववालों ने उसकी आत्मा की शान्ति के लिए गाँव में उसके रस्म उठाले का आयोजन किया। नेताजी को ज्यों ही उनके चमचों से ख़बर मिली कि गाँव के लोग दिवंगत पुल की आत्मा की शान्ति के लिए रस्म उठाले का आयोजन कर रहे हैं तो उन्हें लगा कि अपनी पॉलिसियों को गाँववालों से शेयर करने का इससे बेहतर और मौक़ा कोई नहीं हो सकता। इस बहाने दिवंगत पुल को श्रद्धा सुमन भी अर्पित हो जाएँगे और गाँववालों से मिलना भी हो जाएगा। अरसा हो गया था उनको गाँववालों से मिले बिना। अरसा क्या, वे तब ही गाँववालों से मिले थे, जब चुनाव के वक़्त गाँव में वोट ठगने आए थे।
तो न पुल दिवंगत होता, न वे गाँववालों से मिलने जाते। अब मतलब, एक तीर से दो शिकार। पर अपने नेता जी एक तीर से दो शिकार बहुत कम करते हैं। वे एक तीर से पाँच सात शिकार जब तक नहीं कर लेते तब तक उनको रोटी हज़म नहीं होती। चाहे वह कितनी ही लाइट क्यों न हो।
बौने से बौना नेता ज़िन्दगी में और कुछ नहीं चाहता। बस, अपने सामने भीड़ चाहता है, चाहे वह असली हो या भाड़े की। इससे उसको कोई सरोकार नहीं होता। वह हर तरह की भीड़ के सामने बस, बकना चाहता है। उसे कोई सुने या न, पर उसे यह सोच परम संतोष मिलता है कि उसे भीड़ सुन रही है। या कि जो वह भीड़ के सामने बकना चाहता है, वह वह सब बक रहा है।
अपने दल बल के साथ ज्यों ही उस मैदान में नेता जी पहुँचे जहाँ गाँववालों ने दिवंगत पुल की आत्मा की शान्ति के लिए रस्म उठाले का आयोजन किया था तो वहाँ पर जमा भीड़ को देख उनका मन गद्गद् हो गया। कमबख़्त इतने तो तब भी इकट्ठे नहीं होते थे, जब वे चुनाव के दिनों में उनका वोट ख़रीदने आया करते थे।
सामने चौकी पर दिवंगत पुल की माला डली बड़ी सी तस्वीर रखी हुई थी। तस्वीर के पास ढेर सारी अगरबित्तयाँ जलाई गई थीं। दिवंगत पुल की तस्वीर वाली चौकी के पास गाँव के पंडित जी दिवंगत पुल के चरित्र और उसकी गाँववालों को दी अल्प सेवाओं का बढ़ा-चढ़ा कर गुणगान कर रहे थे।
गाँववालों को सामने से क़ाफ़िले के साथ नेता जी आते दिखे तो सब हैरान हो गए। इस वक़्त नेता जी उनके गाँव में? कहीं फिर चुनाव तो नहीं आ गए होंगे? अपने देश में चुनाव और मौत का कोई पता नहीं चलता। क्या पता कब जैसे आ जाएँ।
नेता जी की गाड़ी रुकी तो वे अपनी गाड़ी से उछल कर सीधे दिवंगत पुल की तस्वीर के आगे आ, अपने गले में पहनी फूलों की माला अपने गले से उतार उन्होंने दिवंगत पुल की तस्वीर पर डाली। और फिर दिवंगत पुल की तस्वीर के साथ आँसू बहाते बैठ गाँववालों को संबोधित करते बोले—“हे केवल और केवल मेरे वोटरो! मुझे हाल ही में तुम्हारे लिए स्पेस तकनीक से बनाए पुल के अचानक दिवंगत होने की ख़बर सुन बहुत दुःख हुआ। यह सुनते ही मुझे ऐसा लगा जैसा पुल नहीं, मैं दिवंगत हुआ गया होऊँ। इस कठिन समय में मेरी गहरी संवेदनाएँ पूरे गाँव के बच्चे-बच्चे के साथ हैं, कुत्ते-कुत्ते के साथ हैं। उन सभी के साथ हैं जो डरते हुए पुल से इस पार से उस पार जाया आया करते थे।
“हे मेरे प्यारे वोटरो! कहने को ही सही, बहुत दुःख होता है जब कोई सरकारी निर्माण हमारी ज़िन्दगी से चला जाता है। हम सब कुछ भूल सकते हैं, पर उस सरकारी निर्माण के साथ खाए अविस्मरणीय पलों को लाख भुला कर भी नहीं भूल सकते।
“हे पुल! तू अब भले ही साथ न हो,
तेरी कमीशन ख़ुश्बू बहाती रहेगी।
हर पुल सेंक्शन कराते हुए,
हर नाले पर तेरी याद आती रहेगी।
“तुझे जनप्रिय नेता की भावभीनी श्रद्धांजलि!
“हे मेरे वोटरो! हम सब जानते हैं कि यह संसार गिरने के नियमों के अधीन है! बात कड़वी मगर सच है! गिरना ही जीवन का अंतिम सत्य है। कोई भी जीव खड़े हुए बिना रह सकता हो या नहीं, पर वह दिवंगत बिना हरगिज़ नहीं रह सकता। गिरना सृष्टि का नियम है। ईश्वर दिवंगत पुल की शोषित आत्मा को शान्ति दें!
“एक पुल था कि
सरकारी निर्माणों के घराने से उठ गया,
सारा विभाग हैरान,
अहा! ये पुल भी विभाग के हाथों लुट गया!
हे दिवंगत पुल! तुझे अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि!
“हे मेरे वोटरो! इस वक़्त जो मैं महसूस कर रहा हूँ, वह शब्दों से परे है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। पुल के दिवंगत होने से तुम्हें जो दुःख हुआ है, मुझे भी अपने इस दुःख में गले गले से बहुत ऊपर तक शामिल समझिए।
“हे मेरे वोटरो! निश्चिंत रहिए। हमने पुल के गिरने की न्यायिक जाँच बैठा दी है। जल्द ही दूध में पानी, पानी में दूध हो जाएगा। तब यह भी पता चल जाएगा कि पुल को गिरने पर किसने विवश किया। बिना किसी के विवश किए बग़ैर कोई नहीं गिरता। जाँच से यह भी पता चल जाएगा कि पुल को मारने के पीछे कहीं विपक्ष या फिर विदेशी ताक़तों का तो हाथ नहीं। मेरे नेता रहते हुए पुल को असमय मारने वाला कोई भी क़ानून से बच नहीं सकता, चाहे उसके हाथ कितने ही लंबे क्यों न हों। विश्वास रखिए, तुम्हारे नेता के हाथ सबसे लंबे हैं। मेरे होते हुए कोई पुल से नहीं खेल सकता। दुःख की इन घड़ियों में मैं और मेरी पार्टी तुम्हारे साथ है।
“ईश्वर दिवंगत पुल की आत्मा को शान्ति दें!
“हे मेरे वोटरो! मुझसे अधिक और कौन जानता है कि इस पुल का अचानक गिरना तुम्हारे लिए कितना भयानक सदमा है। सच कहूँ तो ये सदमा अचानक सरकार गिरने से भी अधिक भयानक है। मेरे लिए इस दुःख को व्यक्त करना बहुत मुश्किल है, लेकिन जब तक मेरी संवेदनाएँ तुम्हारे साथ और तुम्हारा वोट मेरे साथ है, हम दोनों के लिए इससे अधिक और कुछ चाहिए भी नहीं।
“हे मेरे वोटरो! मानता हूँ ज़रा सी भी बारिश होने पर दिवंगत पुल की तुम्हें बहुत याद आएगी। पर अब उसे याद करने के सिवाय और तुम कर भी तो कुछ नहीं सकते न! हे दिवंगत पुल! जब तक तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं हो जाता, तब तक तुम हमारे दिलों में रहोगे। अपने रस्म उठाले के इस मौक़े पर कृपया मेरी तरफ़ से पूरे गाँव का नेता होने के नाते श्रद्धांजलि स्वीकार करो।
“अहा पुल! तुम कितने दयालु, सहनशील और उदार थे। तुम्हारे साथ इंच इंच पर अन्याय होता रहा। तुम्हारा फ़ुट-फ़ुट पर शोषण होता रहा। पर तुमने कभी इंच भर भी ज़ुबान नहीं खोली। अपनी इस सदाशयता के लिए, इस चुप्पी के लिए प्लीज़! मेरी हार्दिक संवेदना स्वीकार करो!
“हे मेरे वोटरो! हर सरकारी निर्माण का असमय गिरना, दिवंगत होना अटल है। उसे गिरने से कोई नहीं रोक सकता। इस कठोर सत्य को तुम जितनी जल्दी स्वीकार कर लो, उतना ही भविष्य में दुःख कम होगा। मैं जानता हूँ कि मेरे वोटरों का दिल बहुत बड़ा है। जबसे देश आज़ाद हुआ है तबसे ही तुम्हें तंगियों में रहने की आदत है। क़दम क़दम पर ख़तरों से खेलने की लत है। समझ लो! तुम्हारा और इसका साथ बस इतना ही था। सरकार के हर निर्माण में हेराफेरियों के चलते इतने दिन भी जो ये पुल जैसे कैसे खड़ा रहा, इसके लिए इसकी हिम्मत को दाद देनी होगी। जब भगवान द्वारा बनाए जीव का ही पल भर का भरोसा नहीं तो ये तो बेईमान जीवों के द्वारा बनाया पुल मात्र था।
“वक़्त के साथ पुल गिरने के ज़ख़्म तो भर जाएँगे,
मगर जो दिवंगत बिन बरसात ही,
वे फिर किसी जन्म में भी
अपने पिलरों पर खड़े न हो पाएँगे।
“बस, अब अंत में उस दयालु परमात्मा से इतनी भर प्रार्थना कि वे दिवंगत पुल की आत्मा को अपने चरणों में जगह दें और पुल बनाने वाले विभाग को पुनः पुल बनाने के बहाने पुल को तिल तिल खाने के लिए पहले से अधिक बजट तत्काल मुहैया करवाएँ।”
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