सादी – उत्सव या संस्कार?
कविता | नरेश चन्दसाल उन्नीस सौ पैंसठ गन्ना कटाई के मौसम
सेठ के लड़कक सादी के दिनवा तय भय जिस दम
देखत सादिक चर्चा पूरे गाँव में होई गए
रही हफ्ता भर मौज लोग सब ख़ुशी मगन भाए।
नक्चान सादी के दिन गाँव में हलचल भारी
खुसी खुसी सब करे लगिन सादिक तैयारी
चला नाउ फिर पियर-चाउर लै बटिस नउता
इधर सेठ गए टाउन लाइस ढेर के सउदा
अदमी काटें लकड़ी लई के टांगा आरी
अउरतन करिन घर-आंगन के सफाई जारी
करिन सफाई जारी अउर फिर बना मिठाई
इम्लिक चटनी चटक वाला फिर भी दिहिन बनाई
फिर बना अदमी-अउरतन के झाप अलग से
बीच में लागईन ऊँचा पर्दा घास-फूस के
घास-फूस के बीच में बैठी एक दरबान
इधर-उधर जो झाँकी तो ऊ पकड़ी कान
तेल्वान आईस तो बटुर गय पूरा गाँव
पोतिन दूल्हाक तेल कई दफे सर से पाँव
सर से पाँव आज दूल्हाक अइसन चमकायिन
कनिकानी वाला चेहरा चटक बनाइन
लाए-लाए के बिन्जिन बत्ती सब के घर से
जगमग कर दिहिन अंगना रात से पाहिले
रात के चलिन महिला मंडल फिर धरती पूजे
नाच उनके देखें लड़कन झूखी में छिप के
भात्त्वान के दिन दुपरहे पूड़ी सब छन गए
दाल-भात आलू-बईगन तरकारी बन गए
तरकारी बन गए संझक सब कोई सपर के आईन
ढोलक बजाये के मिहला मंडल गाना गाइन
फिर अदमिन में चला निंगोना तईलेवु वाला
उधर अउरतन गाना गावें और भूजें लावा
भूजें लावा नेग मांगे सब कोई दई जाना
चलो हमहु दई आई उनके दुई-चार आना
फिर भए एमास्टर शरमक भाषण सुन लेव भाई
नामावली है कौन-कौन बारात में जाई
कौन-कौन बारात में जाई एक-एक घर से
नई जइहें छोटा लड़कन रस्ता है दूर के
चला देर तक हरकन बिबिक नाच निंगोना
ख़नवे न खाईन सबै निगोंचिन ताकिन कोना
ताकिन कोना पड़ा रहिन जईसे बेहोस
उठिन देरिम भुतियान जगाईस घर के बोस
संझक सजा बरात बाराती चटक सपर के
तासा-ढोल बजा नचिन कुछ गाँव के लकड़े
नचिन गाँव के लकड़े चला बस सीटी मार के
आगे-आगे दुल्हक मोटर सजा गजब के
टाउन में रुक के लिहिन तमाखू चिंगम दारू
नाचत-गावत पहुंच गइन लौतोका सारु
सारु पहुंच के पंडितवा सब के समझाइस
पराया गाँव है इज़्ज़त से रहना बतलाइस
जग्गक नसेड़ी गैंग से बोलिस ढंग से रहना
जादा पीके नसा में कहीं हुड्दंग न करना
हुड्दंग न करना कहीं नसा में देखो भाई
खतरनाक है गाँव हियाँ होई जाई पिटाई
द्वार पूजा परिछन भांवर भी पर गए
हल्ला-गुल्लाम कौन सुने पंडित का कहि गए
पंडित का कहि गए इस से का मतलब है भाई
चलो ख़तम भय सादी अब तो कुछ हमहु चढ़ाई
फिर लेटेस्ट क़व्वाली चला सब कैला मारें
एक दुसर पे कव्वालन फूहर गारी झारें
गारी झारें तना-तानी तक बात पहुँच गए
समझाइन कुछ लोग फिर भी कहाँ उ मानें
जग्गक नसेड़ी गैंग बोले और लेटेस्ट गाओ
जिसके अच्छा न लगे उठो चुप्पे घर जावो
चुप्पे घर जावो सुन के लोग बड़ा गुस्साइन
बड़े बेसहुर लड़के हैं ई कहाँ से आइन
फिर जग्गा भंडारिस भीड़ गए चइसा माँगे
धक्का-धुक्की भाए गिर गए जग्गा चूलाहक आगे
चूलाहक आगे गिरा टेर्लिंग पैजामा जरी गए
फिर तो चल पड़ा मार घराती पीटिन धर के
भगिन नसेड़ी गन्ने-गन्ना सब नसा उतरि गए
वापस सादिम जाएँ भला अब कौन मुंह लई के
कौन मुँह लई के जाएँ घराती लात लागैहें
बराती भी होइहैं गुस्सम हमका कहे बचइहैं?
वहीं रात कहीं सारु गाँव में होई गए चोरी
चोर तो गइन लुकाए पकड़े गइन नसेड़ी
पकड़े गइन नसेड़ी पुलिस फिर लाद के लई गए
खूब हजामत करिन रात भर चोर समझ के
सबेरे शिष्टाचार में सब के चेहरा लटका
मांगिस सेठ माफ़ी समधी क्षमा दे हमका
क्षमा दे हमका फिर दूनो समधी मिल भेटिन
भई दुल्हिन फिर बिदा घरातिन रोईन-पीटिन
लउट के आईस बरात बरतिए गुमसुम बइठे
कुछ लफंगन के कारन उनके नाक जो कट गए
नाक जो कट गए और पुलिस तक बात पहुंच गए
सेठ के संघे बरतियन के भी सर नीचा होई गए
गाँव में फिर पंचाईत बईठा और दिहिस कानून बनाई
आज से सादी-बियाह में दारू पीना है मनाही
दारू पीना है मनाही फैसला सुनलो भाई
जे तुड़ी कानून निकला गाँव से जाई
सुन लेव सादी-ब्याह कोई खेलवार नहीं है
ई है धरम के काम कोई मनोरंजन नहीं है
मनोरंजन नहीं ब्याह मुख संस्कार है भाई
जे न करी सम्मान ऊ जीवन भर दुःख पाई
इस विशेषांक में
बात-चीत
साहित्यिक आलेख
- फीजी में रामायण का सांस्कृतिक प्रभाव शुभाषिणी लता कुमार | साहित्यिक आलेख
- फीजी में हिंदी अख़बार शांति दूत के 85 साल डॉ. जवाहर कर्नावट | साहित्यिक आलेख
- फीजी हिंदी के उन्नायक : प्रोफेसर सुब्रमनी दीप्ति अग्रवाल | साहित्यिक आलेख
- फीजी के राष्ट्रकवि पंडित कमला प्रसाद मिश्र डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- फीजी के गिरमिट गीत श्रीमती धीरा वर्मा | साहित्यिक आलेख
- फीजी का सृजनात्मक हिंदी साहित्य विमलेश कान्ति वर्मा | साहित्यिक आलेख
कविता
- कुछ अनकही बातें सुएता दत्त चौधरी | कविता
- गोवर्धन उठा लो सुएता दत्त चौधरी | कविता
- सादी – उत्सव या संस्कार? नरेश चन्द | कविता
- ये दीवाली वो दीवाली खमेन्द्रा कमल कुमार | कविता
- ऐ थम जा मदहोश परिंदे! खमेन्द्रा कमल कुमार | कविता
- तुझे छोड़ के हम कहीं नहीं जाएँगे मौहम्मद यूसुफ़ | कविता
- महफ़ूज़ खमेन्द्रा कमल कुमार | कविता
- पिंजरा खमेन्द्रा कमल कुमार | कविता
- फीजी हिंदी हमार मातृभासा रेजीना नाइडू | कविता
- पीपल की छाँव में उत्तरा गुरदयाल | कविता
- सावन की हवाएँ उत्तरा गुरदयाल | कविता
- अपना फीजी उत्तरा गुरदयाल | कविता
- हमार गाँव सरिता देवी चन्द | कविता