साझेक खेती
कहानी | सरिता देवी चन्दहँसुआ चलाए के मौसम फिर से आए गए। जिधर देखो उधर सब खेत में हरियर और पीयर रंग देखाए लगा। कड़ा घाम और हवा के बहाव में तो इतना सुन्दर दिखाए जैसे कोई हरियर और पीयर मक्मल के चद्दर बिछाए दीस सब तरफ। जिधर देखो बस उधर सब खेत में धान पक गए। झुण्ड के झुण्ड चिड़िया आए के वही चद्दर पे बैठे और सब तरफ खाली चिड़ियन के चहचाहट सुनाए दे लगा। मौसम ठीक होए के कारण ई साल सब के खेत में बहुत अच्छा फसल भये। अब तो सब के मन में बस यही बात रहा कि अगर टेम पे सब धान कटाए, दवांए और ओसाये लिया जाये तो मेहनत असूल होए जाई।
अबकी साल केसो भी आपन काका से अधिया पे खेत लई के काफी धान बोये लीस रहा। लान्गालांगा, लम्बासा में बुधई काका के पास सब से जादा जमीन रहा लेकिन बिमारी के कारण अब बहुत कड़ा काम नई कर पावत रहा। उसके घर में उसके औरत, उसके लड़की, जिसके एकाद साल में सादी भी करे के रहा और बड़ा लड़का और उसके पलवार रहत रहिन। सब के खाना खर्चा के भी तो देखे के पड़त रहा। कौन करी? सोहन के वास्ते तो खेत के काम सब से कड़ा रहा, हाँ, अगर रात के देरी ले निंगोना पीये के बोलो तो सब से चटक रहे। सोहन, बुधई काका के एके लड़का रहा, जिसके पास भी चार साल के एक लड़का और ललिता, उसके औरत, फिर से पेट से रही लेकिन उसको कोई बात के चिन्ता नहीं। लल्ली काकी बहुत दुखी रही लेकिन बहुत कुछ बोल नही पावत रही। पतो के हालत पे तरस खाए के अपने ही धीरे-धीरे घर पे काम करे फिर खेत्वो में भी थोड़ा बहुत कराये ले। बस उसके मन में तो यही सोच रहा कि जब बुधई नई रही तब का होई? ललिता और उसके दूनो बच्चन के कौन खियाल रखी? उप्पर से मीना बिटिया के सादी कैसे होई? सोह्न्वा तो रात में निंगोना पीये और दिन भर सोए। लल्ली के मन में एक ही सोच रहा, कि कहीं हमार दसा भी धोबी के कुत्ता जइसन न होए जाए, आखिरी में न हम घर के रही न घाट के।
सोहन के मइया से राहिस नई भय, तो एक रोज आपन अदमी से बोलिस की काहे नाहीं कौनो के अधिया पे दई देवा जाए आपन खेत। खेत में काम भी होते रही और हमहूँ लोग के कुछ आए जाई। ई बिमारी लई के तुम कब तक अकेले खेत में मरिहो। हमहू अब बहुत नहीं कराये सकित है और सोहन के बारे में तो सोचबे नहीं करो, उसके तो निंगोना और नींद से छुट्टी नई मिली। लल्ली भी उदास बैठी सोचत रही कि सारेक, ई निंगोना वाला बिमारी अगर हमलोग के समाज से निकर जाए तब्बहीं ई नवजवान लोग मेहनत करे के सिखिएँ। उधर बुधई भी अब यही बिचार में डूबा रहा कि के इमानदारी से काम कर पाई उसके जमीन में? बहुत सोच बिचार के बाद सोहन के मइया से बोलिस की काहे नहीं केसवा के बुलाए लेई बुलिलेका से और ओके थोड़ा जमीन दय देई अधिया पे कमावे क खातिर।
जब अधिया वाला बात सोहन के कान में गए, तब ऊ जगा और बोलिस, “देखना ऊ हम लोग के जमीन हथियाए न ले।”
बुधई बोलिस, “नई नई! भयेवा के मरेक बाद काफी हुसियार होए गए है ऊ और भउजी भी खुसी होई जाई, सोची भले केसवा के बप्पा अब ई दुनिया में नई है फिर भी एक दादा तो है उन्के खियाल करे वाला।”
तो जब से बुधई केसवा के अधिया पे खेत दिहीस, ऊ रोज से केसवा के पूरा पलवार मिल के खूब मेहनत करिन और उसमें धान बोये दीन। समय समय पे केसवा जाए और जोन काम जरूरी रहे ओके टेम पे करी आवे। आपन भी काम करे और बुधई के भी खूब मदद करे लेकिन सोहन एक दिन भी नई आए के देखिस की कोन केतना काम करिस खेत में।
इधर सब के खेत के धान देख के केसो भी बहुत ख़ुशी रहा काहेस कि दुई हफ्ता पहिले जब ऊ गए रहा खेत के मेड़ सफा करे तो देखे रहा कैसे सब धान के पेड़ बाली से लछा रहा। परसों, बंसी दादा लम्बासा टाउन में मिला रहा तब बताइस की ई साल तोर मेहनत से बुधई के खेत में बहुत भारी धान भए है। यहू बात बताइस कि अगर टेम पे सब धान कटाए गए तब तो खाए से भी न ओराई एकाद साल ले और ओमन से कुछ बेच भी लेहिओ। ई बात सुनके केसो के तो बहुत खुसी लगा, सोचिस कि अच्छा जेतना मेहनत और दौड़ाई करा गए ओतना असूल तो होए जाई।
संझा के टाउन से लौटत के टेम, केसो ब्रेड, बटा और मिट्ठा पानी खरीदिस कहेस कि आज माकिट में थोड़ा अच्छा दाम मिल गए रहा बीन और बोड़ा के। केसो के बस से उतरत देखते उसके तीनो लड़कन जिव परान छोड़ के रफ्तार दौड़ पड़ीन रस्ता के तरफ और उसके हाथ में जब ढेर से थैली देखिन तब तो कूदे लगिन। बहू लोग भी जान गइन की, “आज साइत सब चीज के दाम अच्छा मिला होई तभे ढेर थैली देखाए है और बप्पा थोड़ा खुसी में देखाए है नई तो टाउन से लौटते कोई न कोई चीज के पीछे हमलोग के डाँट लग जाए है।” सिरिया, केसो के बड़ा लड़का, बप्पा के हाथ से कुछ सौदा ले लीस, बब्बी ब्रेड और बटा लीस और सबसे छोटा, सोनू जल्दी से मिट्ठा पानी ले लीस और प्लास्टिक में बोतल हिलाते, झूमते, हँसते घरे पहुँच गईन।
घर के पोर्च में पाल बिछाएक बैठे-बैठे, सब कोई ब्रेड, बटा और मिट्ठा पानी के मजा लेत रहिन तभी केसो बंसी दादा के बात दोहराइस। सब कोई थोड़ा देरी के वास्ते चुप होए गईन और सोचे लगिन बप्पा का बोले है। केसो क मईया बड़ी खुसी भई, बोले “बुधई बाबू के किरपा है सब, तुमार बप्पा नई है फिर भी तुम्मे भुलान नई।”
केसो भी जल्दी से बोलिस, “हाँ ऊ तो ठीक है कि ककवा थोड़ा खियाल कर ले है, लेकिन हमलोग के भी जल्दी से जाएके सब धान काट लेक पड़ीं नई तो चिड़िया सब दाना खाए लेहिंये। अगर ढेर धान होई जाई तो अबसी कुछ बेच के एक गायी खरीदे माँगित है। घरहीं में दूध, दही, घी मिली, कुछ तरसे के ना रही।”
ऊ लोग माँगत रहिन कि मौसम खराब होए से पहिले सब धान काट के आपन घरे लैकाए जाए। सोचे लगिन, कब और कोन कोन जाई धान काटे।
स्कूल के छुट्टी रहा तो केसो सब के सपराये लीस। आपन मइया के भी बताइस कि अबसी उसके के भी चले के पड़ी और बकड़ी, मुर्गी सब पड़ोसी लोग के आसरा छोड़ के जाए के पड़ी। तो बस अब लान्गालांगा जाए के खातिर सब के तईयारी होए लगा। लड़कन के तो खुसी के ठेकाना न रहा, खियाल करे लगिन की बोवाई के टेम कैसे पहाड़ पे अमरुद तूड़े गए रहिन तो सोनू के एक बुल दौड़ाए लीस रहा और नारा में जहाँ कुण्ड रहा ओमे रोज नहात रहिन।
दूसर दिन सबेरे साते बजे मानु के वैन में सब चीज लाद के लम्बासा टाउन पहुँचिन, लेकिन फिर भी बस चला गए रहा। पता लगा की अब एक घँटा बाद दूसर बस मिली, फिर का अब बैठो बस स्टोप पे और अगोरो कि कब आवे दूसर बस। केसो सिरिया के लई के चल दीस माकिट घूमे! बब्बी, सोनू उसके मैया और आजी बैठे बैठे थक गईन, उधर सोनू और बब्बी के भूख और पियास भी लगे लगा। जैसे केसो और सिरिया ब्रेड, भूजा और जूस लई के आइन वईसहीन दूसर बस आए के खड़ा होए गए। सब कोई जल्दी-जल्दी आपन चीज लादिन और बस में चढ़ के बैठ गईन। ऊबड़ खाबड़ रस्ता में बस भड़भड़ाते, कूदते, दुई घँटा बाद लान्गालांगा कैंची पे पहुँचा। केसो क औरत जल्दी से बब्बी के और सोनू के जगाईस। सिरिया और उसके बप्पा उतर के सब समान उतारे लगिन इधर केसो के औरत धीरे धीरे सब के बस में से उतारिस। सब तरफ धाने धान देखात रहा, कुछ खेत में कटाए गए रहा तो कुछ में कटाई अभी चलते रहा। सब कोइन आपन- आपन चीज उठाइन और बुधई के घर के तरफ चल दीन।
घर में बहुत गरम के कारण बुधई, सोहन और उसके लड़का, बब्बन घर के आगे झाप में बैठ के बारह बजे के खाना अगोरत रहें। बप्पा बेटा बस वही बतुआत रहिन की अबसी खूब धान भय है लेकिन सब कैसे कटीहो और कैसे दाहिंयो, ई साल तो बुल भी नई है। लल्ली बहिरे सिल पे पुदीना के चटनी पीसत रही और ओकर पतो चूलाह में दाल छौंकत रही तो एतने में कल्लू बड़ा जोर से भूकिस। सोहन के बप्पा बताइस सोहन से, “देख लेओ कोन आवत है एतना टेम? कहीं कल्लू काट न ले।” बड़े मुस्किल से सोहन उठ के गए, देखिस थोरा दूर पे केसो कँधा पे कुछ लादे चला आवे और ओकर पीछे भी चार पाँच जने रहिन। एतना ढेर जन के देख के सोहन के तो पारा चढ़ गए। कल्लू के खदेर के आयेक मूड नीचे करके चुप्पे बैठ गए, सोचे लगा धान बोवाई के टेम एतना चाचड़ रहा, अबसी फिर मैया और ललिता के मूड के जाहमत आवे हैं। दिन भर बस पकाओ, खावाओ, धो और माजो; ललिता के तो बस मरम्मत है। बुधई पूछिस, “के रहा ? का भय, मुह लटक गए एतना जल्दी।” सोहन गुस्सा में बोलिस, “केसो फिर से पूरा पलटन बटोरे चला आवे है।” सोहन बिना खाना खाए और बिना कोई से कुछ बताए उठा और चला गए।
बारह बजे के कड़ा घाम में केसो और उसके पूरा पलवार गरमान पसिन्यान बुधई क घरे आए के पहुँचिन। राम जुवाही भय अउर खाना वाना खाएके जब सुस्ताये लीन तब केसो और बुधई धान के खेत देखे चल दीन। बात वात होए गए कि कोन खेत से कटाई सुरू होई और कोन कोन कटवइहें ऊ लोग के संघे।
दूसर दिन एकदम सबेरे, बुधई क लड़का सोहन और उसके दुई संगती हँसुआ लई के खेत में पहुँच गईन। केसो, बुधई और उन्के साथी जब पहुचिन तो देखिन, सोहन लोग एक टुकड़ा काट के अधियाए दीन रहें। बुधई, सोहन के धान काटते देख के बड़ा खुसी भये और केसो से बोलिस, “आज पता नई सूरज किधर से निकरा”। ई लोग सब बतुआते, हँसते बगल वाला टुकड़ा में हलिन। जैसे धान में हँसुआ लगा, वैसेही सोहन आए के केसवा क हाथ पकड़ लीस और आपन हंसुआ उसपे तानिस। केसो, बुधई सब हक्का बक्का होए गईन और सोहन के मूह से ऊ गारी निकरे जोन तो साईत कभी बुधई भी ना सुने होई। सोहन केसो से बताइस की ऊ जमीन, ऊ खेत सब उसके और उसके बाप के है और केसो के कोई अधिकार नई है उसके खेत में से धान काटे के। सोहन केसो के बहुत खराब से बेजती करिस और बताइस आज और अभी आपन गट्ठर उठाव, आपन पलटन बटोरो और लौटो आपन घरे। बुधई बहुत कोसिस करिस आपन लड़का के समझावे के लेकिन ऊ काहे माने, सीधा आपन बप्पा के बताइस की तुम चुप रहो। तुम तो वैसे एक गोड़ गड्ढा में लटकाए दीये हव और आपन बप्पा के तरफ लप्का हँसुआ तान के तब उसके साथी उसके समझाइन।
आज तो सोहन ऊ करिस जोन कभी कोई सोचे ना रहा। कोई के बात नई मानिस और केसो के सट पकड़ के उसके खींच के खेत से बहीरे निकारिस। केसो के भी बहुत गुस्सा लगा और दूनो में हातापाई होए लगा। हल्ला दँगा भये और आस पास में जोन लोग सुनिन सब आए गईन देखे तमासा। बाकी कटाईयन दौड़ के दूनो के पकड़ीन और कोसिस करीन झगड़ा छोड़ावे के। बुधई तो ई सब सहे नई पाइस और चक्क्रियाये के गिर पड़ा। वैसे भी उसके हरदम छाती पिरावा करत रहा।
बुधई के हालत देख के धान कटाई वहीं रोक के सब घरे गईन। सब से पहिले तो पड़ोसी लोग बुधई के नाबुअलेबू डिस्पेंसरी पहुचाइन। सबेर से सँझा तक बस तनी तना चला। सोहन जस्ती करके आपन संगतियन के संघे जुटा रहा और उधर केसो गाँव वालन के संघे बुधई के डिस्पेंसरी देखाए के घरे लइक आइस। सँझा ले बुधई के हालत काफी ठीक होई गए रहा। अब तक तो केसो और सोहन के बीच के झगड़ा के बारे में गाँव भर में बात फैल गए रहा। सब से पहिले तो बंसी भयेवा आइस जब सुनिस की ऐसे होई गए। गुसान तो बहुत सोहन के उप्पर और बताइस की सँझा के बिरजू पंडित और गाँव के एकाद बड़े- बड़े जन के लेई के आई तब कुछ समझौता करी।
घर में काफी सन्नाटा रहा, घर के बड़ा-बड़ा जन एक दुसरे से बहुत बात नई करत रहिन, बस कभी कभार लड़कन के अवाज सुनाये जात रहा। जब थोड़ा- थोड़ा अँधियार होए लगा तब बुधई लड़कन से झाप में पाल बिछ्वाईस और अपने एक खूटा से अटक के बैठ के सब के अगोरे लगा। केसो और सोहन के बतावा गए कि अभी बंसी दादा और बिरजू पंडित अइहें कुछ बात करे।
सब आए के चा पानी पी लीन तब बंसी बातचीत सुरू करिस। बुधई सफा बताइस की काहे उसके जमीन अधिया पे दे के पड़ा। सोहन तो एक दम गुस्सान बैठा रहा उप्पर ताके के तो ओकर पास हिम्मते ना रहा। बुधई बहू बताइस की केसो और उसके घर वाले खेत में केतना मेहनत करिन तब जाए के खेत में इतना अच्छा धान भये है।
केसो भी आपन बयान में यही बोलिस की ऊ भी बहुत हर्जा खर्चा करके हियाँ आए के धान बोइस है। गाँव वाले भी केसो के साबासी दीन की वही के मेहनत से आज बुधई इतना धान उगाये पाइस है। सोहन गुमसुम बैठा रहा और बस इतने बोलिस, “हाँ, तब ठीक ई पहिला और आख़री रहा। इसके बाद कोई नई आई हमार जमीन में काम करे।”
बंसी दादा और जेतना सब आए रहिन समझोता कराये बताइन की अबसी आठ टुकडा धान भये है तो इन्साफ तब होई जब ओमन से एक दम आधा आधा होई। चार टुकड़ा बुधई भईया के और चार टुकड़ा केसो के। सब के भी वही विचार रहा अउर बिरजू पंडित बोलिस, “हमहू तो सबके एके लाठी से हाँकित है”
इस विशेषांक में
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