आज की बात
काव्य साहित्य | कविता मुनीष भाटिया15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
कर्म किए जाएँ,
फल की चिंता न करें
बचपन से सीख
यही सुनाई है,
पर बिना फल की
इच्छा के,
कर्म की लौ भी
बुझ जाती है।
युग ऐसा आया है
विचित्र आज का,
हर कर्म में छुपा है
सौदा हर पल
ना हो लाभ,
ना मिले परिणाम,
तो समर्पण भी झूठा
दिखने लगता है।
रिश्तों में भी अब है
आई सौदेबाज़ी,
कितना दिया,
कितना पाया,
दिल भी लगा
हिसाब लगाने में,
स्वार्थ का धागा अब तो
प्रेम पर है छाया।
कर्म करने पर
फल की रहती आस,
हर सौदे में होती
लाभ की बात ख़ास।
व्यापार में भी
ताले लग जाते हैं,
हानि हो तो
कोई ना बढ़ाता हाथ।
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