शिक्षक महान
काव्य साहित्य | कविता मुनीष भाटिया15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
नहीं जीवन है रुक-रुक कर जीना
मंज़िल जब हो अँधेरों में गुमशुदा
तमस हृदय में ज्ञान दीप जगाए
सत्य पथ दिखाए गुरु महान!
ए शिक्षक महान प्रणाम तुम्हें!
कस्तूरी मृग सा हो जब बेख़बर
विचरता मन बस इधर-उधर
भीतर बसती महक रूहानी से
रूबरू करवाए गुरु देव!
ए गुरु महान प्रणाम तुम्हें!
माटी काया को स्वर्णिम बनाए
आशीष तेरे से गतिशीलता सम्भव
जीवन लफ़्ज़ का भेद सुलझाए
भव-सागर पार कराए गुरु महान!
ए गुरुदेव महान सलाम तुम्हें!
बेजान बदन पर पंख लगाए
भरोसा नभ पर उड़ने का
अधूरे जीवन में सार्थकता का
दिव्य बोध करवाए गुरु महान!
ए शिक्षा दाता प्रणाम तुम्हें!
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