तन्हाई
शायरी | सजल मुनीष भाटिया1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
अकेलेपन से जूझ रहा इंसान हर कोई,
भीड़ में घिरा हो, फिर भी तन्हा है हर कोई।
ज़माना है दुश्मन देता धोखे नित नए,
अपनों की बेवफ़ाई से टूटा है हर कोई।
ज़िन्दगी की दौड़ में रौंदता रिश्ते सभी,
जीत के नशे में ख़ुद को भूला है हर कोई।
मंज़िल की तलाश में लहरों से टकराए,
साहिल के थपेड़ों से उलझा है हर कोई।
सुकून की राह में उम्मीदों का सहारा लिए,
अंजाम से बेख़बर जिए जा रहा है हर कोई।
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