पितृ ऋण
काव्य साहित्य | कविता मुनीष भाटिया1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मत भूलो पितृ का साया,
ये जीवन का सच्चा सहारा।
घर-आँगन में सुख भर जाते,
अपने तन-मन सब लुटाते।
कठिन तपस्या, मौन त्याग,
हर संकट में खड़े निरंतर।
संतानों की ख़ुशहाली ख़ातिर,
ढोते बोझ सहज निरंतर।
चट्टान-से अडिग वो रहते,
तूफ़ानों से लड़ते रहते।
उनके आँचल में पलकर ही,
ख़ुशियों के फूल हैं महकते।
पथरीली राहों पर चलकर,
सपनों का आकाश सजाते।
पसीने की हर बूँद से वो,
जीवन को अमृत कर जाते।
ख़ुदा का दूजा रूप वही हैं,
जीवन-पथ के दीप वही हैं।
पितृ-पक्ष का मान करे हम,
ये ही परिवार का अभिमान।
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