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बाग़ी लड़कियाँ

 

वो लड़कियाँ 
जो माहौल में नहीं ढलतीं
बाग़ी कहलाती हैं 
 
वे बागी होती हैं 
क्योंकि उनके ख़ूबसूरत 
शरीर के अंदर 
धड़कता है एक 
प्रेम भरा दिल 
क्योंकि उनकी 
आँखें ही नहीं दिमाग़ भी 
देखता है सब कुछ
सोचता है, समझता है
महसूस करता है ।
 
वो हाड़ मांस की 
कठपुतलियाँ नहीं होतीं 
वो . . . वो . . . 
क़ैद नहीं होतीं 
समाज के जंग खाए तालों में 
 
वो बाग़ी होती हैं 
क्योंकि वो घर से भाग जाती हैं 
अपनी राह चुनने 
छोड़ देती हैं बचपन
और नए ख़्वाब 
लगती हैं बुनने
 
विद्रोह करती 
ये बाग़ी लड़कियाँ 
जब पकड़ी जाती हैं 
तो कभी ज़मीन में गाड़ कर 
पत्थरों से मार दी जाती हैं 
कभी सबके सामने 
गोलियों से भून दी जाती हैं 
कभी नुक्कड़ के पेड़ पे 
फाँसी पे लटका दी जाती हैं 
 
जब भी वो लीक से हटती हैं 
कभी वीर बाला लाइना की तरह 
काट दिए जाते हैं उनके स्तन 
कभी निर्भया सी
किडनैप कर ली जाती हैं 
और सामूहिक बलात्कार के बाद 
फेंक दी जाती हैं चलती बस से 
असमय मरने को ।
 
पर फिर भी ये बाग़ी लड़कियाँ 
कम नहीं होतीं
वे घर में चैन से नहीं बैठतीं 
क्योंकि वे जानती हैं 
स्वतंत्र हवा में साँस लेने का सुख। 

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