मन वृन्दावन
काव्य साहित्य | कविता रेखा राजवंशी6 Dec 2014
आ जाती जो ख़बर तुम्हारी
मन वृन्दावन हो जाता
भावों की फिर रिमझिम होती
मरुथल सावन हो जाता
एक आरती फिर जल जाती
अगर धूप की ख़ुशबू आती
द्वार रंगोली फिर सज जाती
आँगन पावन हो जाता
सारे दर्द पिघल जाते
और सारे शिकवे मिट जाते
इस धरती से उस अम्बर तक
चन्दन-चन्दन हो जाता
चाँद सितारे फिर मुस्काते
सौ सन्देश तुम्हें पहुँचाते
चम्पा और चमेली खिलतीं
सुरभित जीवन हो जाता
हरसिंगार फिर झरने लगते
महक पुरानी भरने लगते
बजने लगती कहीं बाँसुरी
सारा आलम खो जाता
पर तुम हो आवारा बादल
विरहिन की आँखों का काजल
अगर बरसते तो गंगाजल
मनवा दर्पण हो जाता
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