नई हवा
काव्य साहित्य | कविता रेखा राजवंशी6 Dec 2014
उगी कोंपलें हरी-हरी, बिखरे हैं पीले पात
अब तो साथी बहना होगा, नई हवा के साथ
मंदिर की घंटी के बदले, चले वीडियो गेम
और तरक़्क़ी के बदले, अब बिक जाता है प्रेम
फूल, सितारे, जुगनू, चंदा बतलाते हालात
अब तो यूँ ही रहना होगा, नई हवा के साथ
विज्ञापन की दुनिया में फीके पड़ते अख़बार
बनावटी चीज़ों में जैसे दबे सभी त्यौहार
घर की बूढ़ी काकी पूछे, दिन है या है रात
मन में सब कुछ सहना होगा, नई हवा के साथ
चमक-दमक में डूब गए शहरों के क्लब व बार
हाला, हल्ला, हंगामा है मनोरंजन का सार
फ़िल्मी बनी ज़िन्दगी, झूठी लगती सबकी बात
कुछ न किसी से कहना होगा, नई हवा के साथ
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