इक दीप जलाए बैठे हैं
शायरी | नज़्म रेखा राजवंशी19 Dec 2014
कुछ ज़ख्म छिपाए बैठे हैं
कुछ दर्द दबाए बैठे हैं
सूखे फूलों की ख़ुशबू में
कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं
वो शायद वापिस आ जाएँ
ख़ुद को समझाए बैठे हैं
ये दिल है संगोख़िश्त नहीं
क्यों ग़म ये लगाए बैठे हैं
इन बेगानों की बस्ती में
क्या बीन बजाए बैठे हैं
अँधियारा डस लेगा मन को
इक दीप जलाए बैठे हैं
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