बसंत आ गया है...
काव्य साहित्य | कविता धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
आशा के मनोहर मोती लेकर,
उम्मीदों के दीप जलाकर।
हृदय में उमंग की बौछार करके,
मन में थोड़ा इठलाकर॥
खेतों में लहराता हुआ,
बसंत आ गया है...
अनुपम से बंधन में बाँधने,
नेत्रों में स्नेह के स्वप्न दिखाकर।
निन्दा को मन से दूर भगाने,
प्रेम की नई परिभाषा लेकर॥
सबको हृदय से लगाता हुआ,
बसंत आ गया है...
सखियों को मिलकर गीत सुनाने,
आली समूह में आगन्तुक बनकर।
देख हर्षाये, मन में मुस्काये,
आनंदमय हो शरमाकर॥
प्रेम गीतों को गुनगुनाता हुआ,
बसन्त आ गया है...
बनकर शांति दूत इस जग में,
संदेशा समृद्धि का देकर।
पंछियों सा आसमान में उड़ता,
आधुनिकता का बोध कराकर॥
हवाओं में बहता हुआ,
बसंत आ गया है...
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