कोई जादू सा है
काव्य साहित्य | कविता धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
दुःखी मन का आभास कर,
मेरे हाथ को थाम लेना।
दूर ना जाने का वादा कर,
अपने हृदय में बसा लेना॥
महसूस होता है मुझे, जैसे...
तेरी बातों में कोई जादू सा है।
ख़यालों में तुझको पाकर,
सुकून सा मिलता है, मुझे।
तेरी ख़ामोशी में छुपे राज़,
कभी पढ़ने तो दे मुझे॥
मुझे यक़ीन सा है अब तो...
इन राज़ों भी, कोई जादू सा है।
सोचता हूँ, तेरी नादानियों पर,
कोई किताब लिख दूँ।
ख़्वाहिशों की सूची बनाकर,
अपने हृदय में सजा कर रख लूँ।
वैसे तेरी बेमतलब की,
नादानियों में, कोई जादू सा है।
तेरे गोल-मटोल चेहरे पर,
छायी ख़ुशी देखकर।
मैं ख़ुद को भूल गया था,
बैठी थी जो ज़ुल्फ़ों को सँवारकर॥
मंद हवा में लहराती हुईं,
तेरी ज़ुल्फ़ों में, कोई जादू सा है।
ठुनक-ठुनक कर मेरे मन में,
अपना प्यार तुम जताती रही।
बिछड़े दिलों को मिलने में,
अनेक कोशिशें करती रही॥
तेरे निश्छल प्रेम पर यक़ीन है, लेकिन...
इस यक़ीन में भी, कोई जादू सा है।
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