छुड़ाना साँड़ का
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी दिविक रमेश12 Jan 2016
मजा आया तो लो एक और किस्सा सुनो। हाँ, हाँ गोपाल भाँड का ही।
यह तो मालूम ही है कि कृष्ण नगर में महाराज के दरबार में गोपाल भाँड को रखा गया था। इन्हीं महाराज ने अपने पिता का श्राद्ध किया तो गोदान के रूप में एक साँड़ को मुक्त करवा दिया। बँधा हुआ साँड़ खुल जाए तो साँड़ को मजा आएगा ही। पिंजरे का द्वार खोल दो तो पंछी को भी तो आजाद होने का मजा आता है।
साँड़ इधर-उधर घूमता, खुश होता कृष्ण नगर राज्य की सीमा पर जा पहुँचा। अब साँड़ ठहरा पशु। उसे सीमा-वीमा का क्या ध्यान। उसके लिए तो सब जगह एक समान। वह सीमा के पार हो गया। उसे क्या पता था कि सीमा पार बंगाल के नवाब मीरजाफर का शिविर लगा हुआ था। वह ताकत में कृष्णनगर के महाराज से कहीं ज्यादा था। नवाब के सेवकों ने देखा कि उनके शिविर के पास एक खूबसूरत, हट्टा-कट्टा साँड़ मजे से घूम रहा है। मन ही मन वे खुश हुए। नवाब ऐसे बढ़िया साँड़ को देखकर कितने खुश होंगे। खूब इनाम देंगे। सो पकड़ लिया साँड़ को और बाँध दी उसके गले में रस्सी। साँड़ को तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। कितने दिनों बाद तो वह आजाद हुआ था। अपने मन से इधर-उधर घूमने की उसे छूट मिली थी। लेकिन यहाँ उसे फिर से बन्दी बना लिया गया।
नवाब के आदमी साँड़ को नवाब के सामने ले आए। इतने खूबसूरत, साफ सुथरे साँड़ को देखकर नवाब तो जैसे खुशी के मारे उछल ही पडा। उसने कहा, ’इतने बढ़िया साँड़ का गोश्त कितना स्वादिष्ट होगा। इसे ठीक से बाँध लो। हम दावत करेंगे।‘ बेचारे साँड़ को क्या पता उसके साथ क्या होने वाला है। वह तो जैसे उस वक्त को कोस रहा था जब वह अपने राज्य की सीमा के बाहर आ गया था।
इधर एक गुप्तचर ने महाराज को बताया कि कैसे पिता के श्राद्ध में गोदान के लिए मुक्त किया गया साँड़ नवाब की कैद में है। और नवाब उसके गोश्त की दावत भी देने वाला है।
जानकर महाराज बहुत ही उदास हो गए। उसे लगा कि उसके पिता की आत्मा को अब कभी शांति नहीं मिलेगी। साँड़ बेचारे पर जो आफत आई है वह अलग। नवाब के ज्यादा ताकतवर होने के कारण महाराज उससे युद्ध भी नहीं कर सकते थे। यूँ भी महाराज नवाब के स्वभाव को जानते थे। वह लालची और घमण्डी था। महाराज की विनती को भी वह नहीं मानता। यही सब सोच सोच कर महाराज की नींद ही उड़ गई। उसने कुछ मंत्रियों से सलाह की। लेकिन किसी के पास समस्या का हल नहीं था। बहुतों ने तो राजा को साँड़ के भुला देने की ही सलाह दे डाली। आखिर नवाब से लड़ने का साहस तो किसी में था नहीं।
अचानक महाराज को गोपाल भाँड की याद आई। लगा जैसे अंधेरे में कुछ प्रकाश हो गया हो। कुछ उम्मीद जगी। हालाँकि पूरी तरह नहीं। नवाब का मामला जो था। गोपाल भाँड को बुलावा भेजा गया। गोपाल भाँड तुरन्त महाराज के सामने प्रस्तुत हो गया
महाराज ने अपनी सारी व्यथा गोपाल भाँड को सुना दी। गोपाल भाँड ने सारी कहानी ध्यान से सुनी और बिना जरा भी विचलित हुए कहा, ’महाराज आप निश्चिंत हो जाएँ। आपका साँड़ आपको मिल जाएगा। अपनी चिंता अब आप मुझे दे दीजिए।‘
’लेकिन गोपाल! तुम जानते नहीं नवाब बहुत बड़ा धूर्त है।‘
’तो महाराज आप भी नहीं जानते कि आपका यह गोपाल भाँड धूर्तता में नवाब का भी बाप है।‘
राजा को थोड़ी राहत पहुँची। उसने कहा, ’यदि तुम सफल हुए गोपाल तो मैं तुम्हें पूरे सौ रूपयों का इनाम दूँगा।‘
’बहुत अच्छा महाराज!‘ - कहकर गोपाल भाँड चल पड़ा नवाब के शिविर की ओर।
शिविर पहुँचते ही उसने नवाब के वजीर को अपना परिचय दिया। वजीर को जानकर खुशी हुई कि इतने प्रसिद्ध आदमी से उसका परिचय हुआ। वह उसे नवाब के पास ले गया। नवाब ने भी गोपाल भाँड का नाम खूब सुना था। उसकी सूझ-बूझ के कितने ही रोचक किस्सों की भी उसे जानकारी थी। सो उसने गोपाल भाँड का स्वागत ही किया।
गोपाल भाँड ने भी नवाब का बहुत आदर किया। उसने यही दिखाया कि वह बिना किसी खास काम के ही घूमता-घुमाता वहाँ पहुँच गया था। बल्कि नवाब की बहादुरी की उसने झूठी तारीफों के पुल भी बाँध दिए। नवाब बेहद खुश हुआ।
सच में गोपाल भाँड ने बातों ही बातों में नवाब का दिल भी जीत लिया था और विश्वास भी।
नवाब ने गोपाल भाँड को अपना शिविर खुद दिखाना शुरू किया। चलते चलते वे उस जगह भी पहुँच गए जहाँ गोदान वाला साँड़ बंधा था। साँड़ की आँखों में आँसू देखकर गोपाल भाँड मन ही मन बहुत ही दुःखी हुआ। वह साँड़ के पास थोड़ी देर को रूका और साँड़ को ध्यान से देखते हुए नवाब से बोला, ’’नवाब साहब! यह क्या! आपने इस सूअर से भी गंदे साँड़ को अपने शिविर की पाक जगह पर क्यों रखा हुआ है?‘
’गंदा साँड़! क्या आप इसे जानते हैं?‘ नवाब ने आश्चर्य से पूछा।
’बहुत अच्छी तरह नवाब साहब। यह हमारे ही तो राज्य का है। इसे तो हमने खदेड़ा है। जाने कैसे यह आपके शिविर में आ पहुँचा।’ गोपाल भाँड ने कहा।
’लेकिन हमने तो इसके गोश्त की दावत करने की ठानी है।‘ नवाब ने परेशान होते हुए कहा।
’यह क्या कर रहे हैं नवाब साहब। इस साँड़ ने तो सदा गन्दगी खाई है। यहाँ तक कि इसके डर के मारे लोगों ने खुले में शौच करना छोड़ दिया। पता नहीं इसके पेट में कितना गंद जा चुका होगा। गंद तो गोश्त तक भी जा पहुँचा होगा। क्या आप गंद वाला गोश्त खाएँगे और खिलाएँगे? गोपाल भाँड ने नाक-भौंह सिकोड़ते हुए कहा‘
’अरे हटाओ हटाओ इस गंद खाने वाले साँड़ को। खोलो इसे और खदेड़ दो सीमा के पार, यह वहीं ठीक है।‘ नवाब ने हुक्म दिया।
तुरन्त वैसा ही किया गया।
गोपाल भाँड ने भी जाने की इजाज़त माँगी। नवाब ने एहसान मानते हुए गोपाल भाँड से कहा ’आपने हमें गंद खाने से बचा लिया। हम सदा आपके अहसानमंद रहेंगे। हम आपको दो सौ रूपयों का इनाम देना चाहते हैं। कुबूल कीजिए।‘
गोपाल भाँड ने दो सौ रूपए अंटी में डाले और चल दिया सीमा के पार अपने राज्य की ओर। थोड़ी ही दूर पर उसे गोदान वाला साँड़ भी मिल गया। वह उसे लेकर पहच गया महाराज के महल में।
महाराज ने गोपाल के साथ साँड़ को भी देखा तो उसे बहुत संतोष मिला। साँड़ को नवाब की कैद से छुडाने का सारा किस्सा तो उसे उसके एक गुप्तचर ने ही बता दिया था। सो गोपाल भाँड की प्रशंसा करते हुए थमा दिए उसे इनाम के पूरे एक सौ रूपए।
गोपाल भाँड ने वे भी डाले अंटी में और कुछ दरबारियों को खुश करता और कुछ को इर्ष्यालु बनाता लौट आया अपने घर और तान कर चद्दर, सो गया सुख की नींद।
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