झपकी
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा दिविक रमेश12 Jan 2016
बात कुछ भी नहीं थी पर बन गई बतंगड़। कैसे? हाँ हाँ बताता हूँ। अरे भई बात है बीरबल के जमाने की। बीरबल को कौन नहीं जानता। अकबर बादशाह का मुँहलगा। बुद्धिमान इतना कि चुटकी बजाते बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान ढूँढ ले। पर उसका तरीका अनोखा था। सब उसका लोहा मानते थे।नहीं यकीन तो इसी किस्से में देख लो।
एक था भोलू, पर उतना भोला भी नहीं था। हाँ गरीब जरूर था। मेहनती भी था। दिन भर मेहनत करता और जो मिलता उससे अपना परिवार चलाता। पत्नी भी उसका साथ देती।
भोलू घर आता तो पत्नी उसे घड़े का ठंडा पानी पिलाती। भोजन करते समय उसे पंखा झलती। भोलू खुश था कि उसे ऐसी अच्छी पत्नी मिली। गरीबी में भी अच्छी निभ रही थी। रोज रोज का कलह तो नहीं होता था न। कभी-कभार किसी बात पर एक को मन मुटाव होता भी तो झट दूसरा उसे दूर कर लेता।
भोलू की पर एक अजीब सोच भी थी। वह औरतों को मर्दों से कम समझता था। हर मामले में। यूँ यह सोच उसके अधिकतर साथियों में थी। औरत पर रौब जमाना उसे ठीक लगता था। वह सोचता था कि औरत को बहुत ढकी-दबी होना चाहिए। उसे तो किसी मित्र के सामने पत्नी का भोजन करना भी अखरता था। इसीलिए उसकी पत्नी बड़ी संभलकर रहती थी। छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखती थी। जैसे कोई गिलास या कोई बर्तन धीरे से रखना बिना आवाज किए। बिना आहट किए चलना, पति से कोई तर्क न करना आदि उसकी आदत में आ गए थे। वैसे भी वह अपने पति को ही सब कुछ समझती थी। पति के बिना आखिर उसे कौन खिलाएगा-पिलाएगा?
इतना सब होते हुए भी एक दिन वह बात हो ही गई, और बतंगड़ भी बन गई।
उस दिन भोलू ने अपने दो-तीन दोस्तों को घर पर बुलाया था। रस-पानी के लिए। गप्पे हाँक रहे थे। पत्नी हमेशा की तरह सेवा में जुटी थी। बहुत ही संभल कर। पति पुकारता तभी सामने आती। नीची निगाह किए। बिना किसी की ओर देखे, बिना कोई बात किए काम कर जाती। भोलू और उसके दोस्त तो मौज-मस्ती करते रहे पर पत्नी थकती रही। सारा शरीर जवाब देने लगा था। पर किसी का इस ओर ध्यान ही न था।
काफी देर बाद भोलू के मित्र अपने घरों की ओर लौटे। भोलू भी उन्हें विदा कर अन्दर आया। पत्नी थक कर चूर हो चुकी थी। सो बैठे बैठे ही उसे झपकी आ गई थी। भोलू तो मर्द था। उसे पत्नी का यूँ झपकी लेना अपना अपमान लगा। उसने सोचा कि उसके दोस्त देख लेते तो गजब ही हो जाता। पत्नी को तो उसका ख्याल ही नहीं है। न खाना, न पानी न पंखा। उसे खाना खिलाए बिना ही बहुत चैन से झपकी ले रही है। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था।
आहट से पत्नी सजग हो गई। उसने झट पति से माफी माँगी और खाना परोसने लगी। भोलू तो अपमान की घूँट भरते हुए गुस्से में था। उसने भोजन की थाली एक ओर हटा दी। कहा कि अब वह कभी पत्नी से नहीं बोलेगा। सुनकर पत्नी बहुत घबराई। बहुत मिन्नतें की पर भोलू था कि पसीजा तक नहीं। पत्नी अपनी झपकी पर मन ही मन बहुत झल्लाई। बहुत कोसा अपनी झपकी को। पर करती भी क्या। सारी रात रोते जागते ही बितायी।
सुबह भी भोलू बिना कुछ बोले घर से बाहर निकल गया। भोलू की पत्नी भोलू के इस व्यवहार से बहुत परेशान थी, पर कोई रास्ता सूझ ही नहीं रहा था। पड़ोस में ही एक मास्टरनी जी रहती थी। सोचा, उसी से जाकर पूछूँ। पढ़ी-लिखी हैं, शायद वे ही कोई रास्ता सुझा दें।
जाकर मास्टरनी जी को उसने सारा किस्सा सुनाया। मास्टरनी जी ने उसकी सारी बात बहुत ही प्यार और धैर्य के साथ सुनी। सुनकर उसने भोलू की पत्नी को कहा कि वह बादशाह अकबर के दरबार में जाए और समाधान के लिए फरियाद करे। पत्नी को तो बहुत ही डर लगा। यह तो पति की शिकायत करना हुआ। भोलू को पता चला तो वह तो उसे छोड़ ही देगा। मास्टरनी जी ने उसके मन के भाव भाँप लिए थे। उसने समझाया कि वह शिकायत नहीं बल्कि समस्या के हल के लिए बादशाह के दरबार में जाएगी। पत्नी को तब भी संकोच हुआ तो मास्टरनी जी ने उसे अपने साथ चलने को कहा।
भोलू की पत्नी और मास्टरनी जा पहुँची दरबार में। बादशाह और दरबारी भी मर्द थे। सारा किस्सा सुन कर उन्हें भी गलती भोलू की पत्नी की ही लगी। उन्होंने यही कहा कि उसे झपकी नहीं आनी चाहिए थी। केवल एक बीरबल था जिसने भोलू की पत्नी का साथ दिया। बादशाह को अचम्भा हुआ कि बीरबल ऐसी मूर्खतापूर्ण बात का साथ क्यों दे रहा है।
बादशाह ने बीरबल से कहा, ’बीरबल जो बात गलत है तुम उसका साथ क्यों दे रहे हो।‘ पति को बिना भोजन कराए पत्नी का यूँ चैन से झपकी लेना कहाँ की शिष्टता है। क्या यह नापाक नहीं है? जवाब दो।‘
बीरबल ने कहा, ’जहाँपनाह! आपकी बात सर-आँखों पर। पर रहम हो मुझे दो दिन का वक्त दें जवाब देने के लिए। मुझे भोलू से मिलने की इजाजत भी दें।‘
’ठीक है। लेकिन याद रखो दो दिन के बाद तुमने ठीक जवाब नहीं दिया तो कड़े से कड़ा दण्ड भी दिया जा सकता है।‘ - बादशाह ने कहा।
बीरबल ने सिर झुका दिया।
बीरबल पत्नी और मास्टरनी जी के साथ ही भोलू के घर आ गया। भोलू अभी घर पर नहीं आया था। बीरबल ने आसपास के सभी लोगों को इकट्ठा कर लिया। भोलू घर लौटा तो इतने लोग देख कर चौंका। लेकिन संभल भी गया। बीरबल को वह पहचानता था। उसकी समझ में नहीं आया कि बीरबल उसके घर पर क्या करने आया था।
बीरबल ने भोलू से कहा, ’सुना है भोलू तुम अपनी पत्नी से नाराज हो!‘
’हाँ‘, भोलू ने कहा, ’कोई भी मर्द अपनी पत्नी की ऐसी हरकत पर नाराज होगा ही।‘ उसने तमाम लोगों के सामने अपनी पत्नी की झपकी लेने वाली हरकत बता दी। सुनकर वहाँ मौजूद सभी लोग भोलू की हाँ में हाँ मिलाने लगे। तभी बीरबल ने कहा - ’भई चलो वह तो भोलू के घर का और तुम्हारा अपना मामला है। पर मैं तो एक खास काम से यहाँ आया था।‘
सभी जानने को उत्सुक हो गए।
बीरबल ने बताया - ’बादशाह ने दो दिन बाद तुम सबको दरबार में बुलाया है। वहाँ तुम्हें एक ऐसी तरकीब बताई जाएगी जिसे अपना कर तुम देखते ही देखते मालामाल हो जाओगे।‘
’सच‘। भोलू समेत सबने कहा।
बीरबल दो दिन तक दरबार गया ही नहीं।
दो दिन बाद सब लोग पहुँच गए बादशाह के दरबार में। बीरबल तो पहले ही से मौजूद था। वही तो सबका स्वागत भी कर रहा था। इतने सारे लोगों को एक साथ वहाँ देखकर बादशाह का माथा चकराया। बीरबल की हरकत उसे समझ ही नहीं आ रही थी।
बादशाह को सलाम करते हुए बीरबल ने कहा, ’जहाँपनाह! ये सब वह तरकीब जानने आए हैं जिसे अपनाकर ये मालामाल हो जाऐंगे।‘
’तरकीब! कौन सी तरकीब?‘, बादशाह ने हैरान होते हुए पूछा।
’जहाँपनाह, वह तरकीब सिर्फ मुझे मालूम है। पूरे दो दिन का फल है उसकी जानकारी। एक पहुँचे हुए संत ने बतायी है।
’अच्छा! बताओ तो।’
’जान की सलामत चाहता हूँ जहाँपनाह। संत ने उसे केवल कान में बताने के लिए कहा था, सबके सामने नहीं। तरकीब की सफलता के लिए एक शर्त भी है।‘
’चलो कान में ही बताओ‘ - बादशाह ने बेचैन होते हुए कहा।
बीरबल ने भोलू को छोड़ वहाँ उपस्थित सब के कान में कुछ कहा। .............. कोई भी ऐसा नहीं निकला जिसने हाँ में गर्दन हिलायी हो।
बीरबल ने कहा, - ’तो यहाँ ऐसा कोई नहीं निकला जो संत की तरकीब का लाभ उठा सकने की योग्यता रखता है। आश्चर्य है, जहाँपनाह आप भी नहीं। लेकिन मैं निराश नहीं हूँ। अभी यहाँ भोलू भी है। मुझे पूरा विश्वास है कि भोलू जरूर तरकीब के योग्य है।
सुनकर भोलू बहुत खुश हुआ। अब वह अकेला था जो मालामाल होने वाला था। सोच रहा था कि कितना मजा आएगा अमीर बनने के बाद।
तब बीरबल भोलू के समीप आया और उसके कान में भी कुछ कहा।
यह क्या भोलू के चेहरे पर एक साथ कई रंग दौड़ आए। अचानक उसने बीरबल के पाँव पकड़ लिए। बीरबल ने उसे खड़ा कर गले से लगाया। भोलू ने आँखों में आँसू लाते हुए कहा, ’जहाँपनाह! मैं बहुत कठोर हूँ। नीच हूँ। मुझे क्षमा करें। मैं जल्द से जल्द घर जाना चाहता हूँ और पत्नी से माफी माँगना चाहता हूँ।‘
बादशाह और वहाँ उपस्थित सब लोग तो भोलू की उस हालत को समझ ही रहे थे। उनके कानों में भी तो बीरबल ने वही बात कही थी न। उनकी भी आँखें खुल गई थीं।
भोलू घर लौटा तो पाया पत्नी उदास बैठी थी। बुझी बुझी सी। डरी और सहमी सी। भोलू का प्यार भरा व्यवहार देखकर एक बार तो वह हैरान ही रह गई। भोलू बार बार माफी माँग रहा था। पति-पत्नी दोनों की आँखों में आँसू थे।
प्यार और सुख के।
कौन नहीं जानना चाहेगा कि आखिर क्या कहा था बीरबल ने हरेक के कान में। बीरबल ने कहा था कि उसे संत ने एक ऐसी जगह का पता बताया है जहाँ बहुत कीमती रत्नों का भण्डार छिपा है। लेकिन वह उसे ही मिल सकता है जिसने कभी झपकी न ली हो। भला ऐसा कौन होगा जिसने कभी झपकी न ली हो। और वह भी थक चूर कर बैठने के बाद।
बीरबल की तरकीब ने भोलू ही नहीं भोलू की सोच वाले सब लोगों की एक साथ आ
आँखें खोल दी। बादशाह को भी नहीं छोड़ा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
स्मृति लेख
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य कविता
बाल साहित्य कहानी
बात-चीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं