पुन्न के काम आये हैं
काव्य साहित्य | कविता दिविक रमेश12 Jan 2016
(खुली आंखों में आकाश से)
सब के सब मर गए
उनकी घरवालियों को
कुछ दे दिवा दो भाई
कैसा विलाप कर रही हैं।
’’कैसे हुआ ?‘‘
वही पुरानी कथा
काठी गाल रहे थे
लगता है ढह पड़ी
सब्ब दब गये
होनी को कौन रोक सकता है
अरी, अब सबर भी करो
पुन्न के काम ही तो आये हैं
लगता है
कुआँ बलि चाहता था
’हाँ
जब भी कुआँ बलि चाहता है
बेचारे मजदूरों पर ही कहर ढहाता है।‘‘
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