जाइये-आइये
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता दिविक रमेश12 Jan 2016
हाँ हमीं ने बुलाया था न आपको
आपके मुद्दों पर विचार के लिए
पर अब हम नहीं करेंगे न
नहीं करेंगे माने नहीं करेंगे, जाइये।
ऐ न्यायप्रिय जी
सब हमारी मर्जी पर ही चलता है न
कारण-फारण जानकर क्या कीजिएगा
क्या उखाड़ लेंगे आप हमारा
कह दिया न हमारी मर्जी! जाइये।
अरे हे पी.ए. साहिब, तनिक सुनो तो
समझाओ इन्हें। आहाहाहाहाहाहा......
कल प्रैस में मर्जी
और अगले दिन छपवा दीजिएगा न मजबूरी।
आहाहाहाहाहाहा......
अरे! अरे! आप!
आप यहाँ
बुला लिया होता न दास को।
ऐ पी.ए. साहब!
’माफ कीजिए
यह ससुर लांगड़ भी
तैयार रहती है खुलने को
खोले रहूँ
या बाँध लूँ।
हमारी चरण वन्दना तो लीजिए न!
आप हैं तो हम हैं न! आइये।
देखिए न
कितना कुछ तो कह रही हैं आपकी आँखें
हमारे पक्ष में। आइये।
ऐ पी.ए. साहिब
भेजिए न। तनिक जल्दी कीजिए भाई।’
आइये!
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