देशभक्त की पुकार
काव्य साहित्य | कविता पवन त्रिपाठी1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
देश तुझसे,
मैं एक बात कहना चाहता हूँ
जो कभी ज़ेहन में थी,
आज होंठों पे लाना चाहता हूँ!
जब भी मैं ख़ुद को भूलकर
तुझे सोचता हूँ
दिल में एक चिंगारी सी
भड़क उठती है!
कैसे तूने इतने ज़ुल्मों को सहा
अपनी निर्मल छाती पे
ख़ूनी दरिंदो की
गोलियों की बौछारों को
न जाने कैसे कैसे
षड्यंत्र तेरे लिए रचे गए
कितनी बार तुझपे हमले किये गए
फिर भी तू चुप रहा
और सब कुछ सहता रहा
ये देखकर मेरा मन विचलित हुआ
सब, कुछ छोड़कर
मैंने एक संकल्प लिया
चाहे हो जाये कुछ भी
तेरा सर मैं
कदापि नहीं झुकने दूँगा
अगर बारी आयी मेरे बलिदान की
तो मैं पीछे नहीं हटूँगा
मरते दम तक
तेरे लिए लड़ता रहूँगा!
मेरा देश मेरा तिरंगा—
यह मेरा अभिमान है
ऐ ख़ूबसूरत वतन
तुझपे दिल क़ुर्बान है!
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