सबके बाद तुम
काव्य साहित्य | कविता पवन त्रिपाठी1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
जब सब बिखरेंगे,
तब तुम सँभल जाओगे।
जब सब खोएँगे,
तब तुम पाओगे।
आँधियों में भटके हो तुम
अपने अंदर को ढूँढ़ रहे हो तुम
राहें हारती है तुमसे
ज़िन्दगी से जूझ रहे हो तुम
गर फिर भी
जब मंज़िल हार रहे होंगे सब
तब तुम बुलंदी को पाओगे
विश्वास का है आसरा
हर रास्ता तुम पार
कर जाओगे।
संघर्ष के सफ़र में तुम
हर मुक़ाम पे जाने जाओगे
जब सब बिखरेंगे,
तब तुम सँभल जाओगे।
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