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देवेन्द्र सत्यार्थी

 

 (28 मई 1908-१२ फरवरी, २००३)

पुण्य तिथि के अवसर पर एक परिचय

 

‘लोकगीतों के यायावर’ नाम से प्रसिद्ध हिंदी के दिग्गज कथाकार और लोक साहित्य के उद्भट विद्वान देवेंद्र सत्यार्थी का जन्म 28 मई, 1908 को पंजाब के भदौड़ गाँव (जिला संगरूर) में हुआ। लोकगीतों की खोज के लिए पढ़ाई अधबीच छोड़कर घर से भागे। वर्षों तक पूरे भारत की अथक लोकयात्राएँ। महात्मा गाँधी और रवींद्रनाथ ठाकुर सरीखे युगनायकों ने उनके काम को सराहा और उसे इस देश की ‘आत्मा की खोज’ कहा। सत्यार्थी जी क़िस्सागोई के बादशाह थे। उनकी रचनाओं को आज भी देश के कोने-कोने में बैठे उनके असंख्य पाठक और प्रशंसक ढूँढ़-ढूँढ़कर पढ़ते हैं। बच्चों के लिए भी उन्होंने बड़ी सुंदर और भावपूर्ण कहानियाँ लिखी हैं, जिसमें क़िस्सागोई का अनोखा रस है। हिंदी बाल साहित्य में बच्चों के लिए लिखी गई सत्यार्थी जी की इन कौतुकपूर्ण विलक्षण कहानियों का बहुत ऊँचा स्थान है। 

वर्षों तक ‘आजकल’ पत्रिका संपादक रहे सत्यार्थी जी ने हिंदी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी में विपुल साहित्य लिखा है। उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं: ‘धरती गाती है’, ‘धीरे बहो गंगा’, ‘बेला फूले आधी रात’, ‘चित्रों में लोरियाँ’, ‘बाजत आवे ढोल’, ‘गिद्धा’, ‘दीवा बले सारी रात’, ‘पंजाबी लोक-साहित विच सैनिक’, ‘मैं हूँ खानाबदोश’, ‘गाए जा हिंदुस्तान’, ‘लोक निबंध’ (सं. प्रकाश मनु), ‘मीट माई पीपल’ (लोक साहित्य), ‘चट्टान से पूछ लो’, ‘चाय का रंग’, ‘नए धान से पहले’, ‘सड़क नहीं बंदूक’, ‘घूँघट में गोरी जले’, ‘मिस फोकलोर’, ‘देवेंद्र सत्यार्थी की चुनी हुई कहानियाँ’ (सं. प्रकाश मनु, संजीव ठाकुर), ‘देवेंद्र सत्यार्थी की संपूर्ण कहानियाँ’ (सं. प्रकाश मनु, संजीव ठाकुर), ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘कुंगपोश’, ‘सोनागाछी’, ‘देवता डिग पेया’, ‘तिन बुहियाँ वाला घर’, ‘पेरिस दा आदमी’, ‘नीली छतरी वाला’, ‘नए देवता’, ‘बाँसुरी बजती रही’ (कहानी-संग्रह), ‘बंदनवार’, ‘धरती दीयाँ वाजाँ’, ‘मुडका ते कणक’, ‘बुड्ढी नहीं धरती’, ‘लक टुनूँ-टुनूँ’ (कविता), ‘एक युग: एक प्रतीक’, ‘रेखाएँ बोल उठीं’, ‘क्या गोरी क्या साँवरी’, ‘कला के हस्ताक्षर’, ‘यादों के काफिले’ (सं. प्रकाश मनु, संजीव ठाकुर), ‘रथ के पहिए’, ‘कठपुतली’, ‘ब्रह्मपुत्र’, ‘दूधगाछ’, ‘कथा कहो उर्वशी’, ‘तेरी क़सम सतलुज’, ‘घोड़ा बादशाह’, ‘विदा दीपदान’, ‘सूई बाजार’ (उपन्यास), ‘चाँद-सूरज के बीरन’, ‘नीलयक्षिणी’, ‘हैलो गुडमैन दि लालटेन’, ‘नाच मेरी बुलबुल’ (आत्मकथा), ‘सफरनामा पाकिस्तान’ (यात्रा-वृत्तांत), ‘देवेंद्र सत्यार्थी: नब्बे बरस का सफर’ (प्रकाश मनु द्वारा लंबी बातचीत, जो क़रीब सवा सौ पन्नों में फैली है), ‘मेरे साक्षात्कार’ (सं. प्रकाश मनु, साक्षात्कार)। इसके अलावा बाल साहित्य, अनुवाद और संपादन के क्षेत्र में बहुत काम। 

‘देवेंद्र सत्यार्थी: एक सफरनामा’ प्रकाश मनु द्वारा लिखी गई सत्यार्थी जी की विस्तृत जीवनी है, जिसे भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने प्रकाशित किया है। साहित्य अकादमी ने उन पर ‘भारतीय साहित्य के निर्माता देवेंद्र सत्यार्थी’ (प्रकाश मनु) मोनोग्राफ प्रकाशित किया है। इसके अलावा सत्यार्थी जी पर लिखे गए तीन पीढ़ियों के विशिष्ट लेखकों के संस्मरण और मूल्यांकनपरक लेखों के बृहत् संचयन ‘देवेंद्र सत्यार्थी: तीन पीढ़ियों का सफर’ की ख़ासी चर्चा रही। हिंदी के शीर्ष आलोचकों और सहृदय साहित्यकारों ने भी इसे बहुत सराहा। इस ग्रंथ का संपादन प्रकाश मनु ने किया है, जिसमें सत्यार्थी जी के लोक साहित्य पर शोध कर चुके सहृदय लेखक संजीव ठाकुर का भी बहुत प्रमुख योगदान है।                     

आजीवन साहित्य सेवा और लोक साहित्य के क्षेत्र में व्यापक योगदान के लिए सत्यार्थी जी को भारत सरकार की ‘पद्मश्री’ उपाधि प्रदान की गई। हिंदी अकादमी, दिल्ली तथा पंजाबी अकादमी समेत अनेक संस्थाओं से सम्मानित। 
12 फरवरी, 2003 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली में सत्यार्थी जी का निधन हुआ। 

देवेन्द्र सत्यार्थी

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