अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चलो ऐसा करते हैं

 

चलो, ऐसा करते हैं
अपनी-अपनी पीठ पर से उतारकर
उम्र की गठरियाँ
बरसों का भारी बोझ
फिर से हो जाते हैं हलके और तरोताज़ा
हवा से खींचते हैं भरी-पूरी साँस
और हाथ में हाथ पकड़कर सामने के खुले मैदान 
में दौड़ लगाते हैं
 
दूर, इतनी दूर तक अँधेरे और उजाले की हदों को छू आते हैं
कि फिर कभी किसी के हाथ न आएँ, 
कुछ नए ही अचंभों भरे क्षितिजों पर चले जाएँ
चलो, ऐसा करते हैं! 
 
चलो, ऐसा करते हैं
सामने की सड़क पर से कुछ बढ़िया गोल
सुडौल कंकड़ बीनते हैं
और आज दिन भर कुछ और नहीं, बस गुट्टे खेलते हैं
नहीं, गुट्टे नहीं, पतंगें . . . 
तुम्हें पतंग उड़ानी आती है सुनीता? 
अच्छा, चलो छुड़ैया ही देना
इतना तो सिखाया ही होगा तुम्हें तुम्हारे बचपन ने! 
 
या फिर तुम बताओ ज़रा तफ़सील से अपने बचपन के खेल
और मैं अपने
याद कर-कर के वही खेलते हैं
 
तुम्हें याद है एक होती थी पंचगुट्टी
ईंट के ज़रा-ज़रा से टुकड़ों पर टुकड़े जमाकर
तुमने खेली थी कभी
कभी गेंद मारकर गिराई थीं पंचगुट्टियाँ? 
चलो, तनिक छोटी सी नीली एक गेंद ले आएँ
जो छूट गई थी कहीं बचपन में
 
चलो, आज वही खेलते हैं। 
 
चलो, ऐसा करते हैं कि
धीमे-धीमे ताप से धीमी करते बातें
टहलते हैं
और टहलते-टहलते कहीं दूर निकल जाते हैं
समय की सारी सरहदें पीछे छोड़ जाते हैं
 
पीछे छोड़ जाते हैं दुनिया के सारे नियम 
और क़ायदे
और बौने लोगों की बौनी दुनिया के नुक़्सान और फ़ायदे
किसी और दुनिया में चलते हैं जहाँ भाषा इतनी थकाने वाली न हो
लोग इतना अधिक बोलते और घूरते और
इधर-उधर सूँघते और किकियाते न हों
न हो इतने चिड़चिडे़पन का बोझ आत्मा पर
चलो कहीं चलते हैं। 
 
चलो, ऐसा करते हैं कि घूमते-घामते
शहर से बाहर इतिहास के उस खँडहर में
आ जाते हैं
 (राम जाने वह कोई क़िला था, महल या बावड़ी! ) 
उसकी सामने की जो उजड़ी हुई भीत है
चूने और ककैया ईंटों की
उस पर किसी गँवार बच्चे द्वारा उकेरी गई
बुढ़िया-बुड्ढे की शक्लों में
हम बदल जाते हैं
और वहीं टिककर बरसों ज़माने के
हवा, पानी, धूप और मेंह का सामना करते हैं
 
वहीं देखते हैं काल को कालातीत होते
और फिर एकाएक मिट्टी के एक ढूह में बदलते
वहीं तुम मेरी ओर कोई छिपा इशारा
करके मुस्कुराना
मैं तुम्हें सुनाऊँगा किसी पुरानी सी
नज़्म का कोई टुकड़ा
कोई शेर मीर कि ग़ालिब का, अपनी पसंद का! 
 
समय के साथ धीरे-धीरे खिरेगी दीवार
समय के साथ धीरे-धीरे हम ढहेंगे
और मिट्टी में मिट्टी होकर समा जाएँगे
घास में घास
पत्ती में पत्ती
आकाश में आकाश
धूप में धूप
और मेंह में मेंह होकर समा जाएँगे। 
 
और फिर हम न होकर भी
इसी दुनिया में रहेंगे
इसे भीतर से सुंदर बनाएँगे। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

मधु शर्मा 2025/03/01 05:44 PM

बचपन के मनोहर रंग दाम्पत्य जीवन में घोलने की चाह। वाह मनु जी साधुवाद। आजकल आपकी आत्म-संस्मरण 'मैं और मेरी कहानी' पढ़ रही हूँ। उसके अविस्मरणीय चैप्टर 'कोड़ा बदामशाही, पीछे देखो मार खाई' में भी इन्हीं खेलों का उल्लेख पढ़ते-पढ़ते चेहरे पर मुस्कान बिखर गई थी।

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

व्यक्ति चित्र

स्मृति लेख

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं