अमृता प्रीतम के लिए एक कविता
काव्य साहित्य | कविता प्रकाश मनु15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बहत्तर साल की बूढ़ी औरत
थी बैठी मेरे सामने
मेरे सामने था बुढ़ापे का छनता हुआ सौंदर्य
(कितना कसा अब भी!)
महीन-महीन कलियाँ बेले की
गुलमोहर के फूलों की आँच—
में पका
हर शब्द!
हाथ में मेरे थी किताब
जिस पर लिखा था मन की पागल तरंग में मैंने
लिखा था डूबकर कि जैसे कोई सपने में होता है ऊभचूभ
—अमृता जी के लिए
जिनका साथ
दुनिया की पवित्रतम नदी
और कोमलतम सुगंध के स्पर्श की मानिंद है . . .!
यह ठीक है कि
यह
वो नहीं . . .
(वो अब नहीं!
—शायद तुमने भी नोट किया हो सुरंजन!)
भावुकता रुक-रुककर कभी बहती
कभी थम जाती है
समय हर चीज़ को अभिनय में बदल देता है
और फिर कला-अला सिद्धांत के
लेबल जब सस्ते हों सस्ते हों मुखौटे
कोई कहाँ तक बचे?
बहुत-बहुत सतर्क सी दुनियादारी
की पटरी पर
भावुकता है कि अब भी चौंक-चौंक
सिर उठाती है . . .
और कहीं कुछ गड़बड़ाता है!
क्या?
क्या है जो सब कुछ रहते भी
कहीं चुपके से बदल जाता है
और पीछे छूट जाते हैं
इतिहास के रथ-चक्र के निशान . . .!
मगर फिर भी
फिर भी—जब भी वह बोलती है
बोलती है सारी कायनात
यह है उसकी हस्ती का सुरूर आज भी!
आपको लगेगा
आप दुनिया की सबसे ज़हीन
और सबसे ख़ूबसूरत औरत के
पास बैठे हैं
बस, बैठे हैं
क्योंकि ऐसे ही आप पूर्ण होते हैं!
चलते-चलते मेरे मित्र ने छुए पाँव
मुझसे छुए न गए
मैंने देखा हाथों को
उन्हें लेना चाहा हाथों में
और दूर से जोड़ दिए हाथ . . .
विदा!
आख़िरी बात—आई याद अभी-अभी
कि जब मैं कह रहा था
दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत
नहीं, सोचा किया जब मैं—
ऐन उसी वक़्त सत्यार्थी का दाढ़ीदार चोला मटमैला
ठहर गया आँख के आगे
आँखें डब-डब
डब-डब
बिला वजह बे-बात!
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टिप्पणियाँ
मधु 2025/06/28 02:52 AM
अमृता जी की महक लिए हुए मोहक कविता! पढ़ते हुए स्वयं पर तरस आया कि इतनी महान लेखिका से मेरा कभी क्यों न मिलना हो सका। साधुवाद मनु जी।
Suryakant Sharma 2025/06/20 11:49 AM
देवेंद्र सत्यार्थी जी का जिक्र आते ही उसे पुरोधा को सादर नमन। काश कि वह सामने होते तो उनके चरण पकड़ के कभी ना छोड़े जाते हैं। मेरा भी परिचय उनसे सन 1998 में हुआ जब भी लगभग एक संन्यास की अवस्था में रहे यूं तो संन्यास की अवस्था में भी जीवन भर रहे लोकगीतों से उनकी शादी हुई । पर फिर भी वे तब वैराग्य और लगभग यह सही अर्थों में सन्यासी हो गए थे ।उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला । उन्हें प्रणाम। लेकिन अमृता प्रीतम के लिए जो मैडम अजीत कौर ने लिखा उसे तो धारणा ही बदल गई । यूं भी कहते हैं कि सूरत और सीरत जफ़ा और वफ़ा की मानिंद है । आपने सुंदर कविता लिखी। सादर प्रणाम
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पद्मा मिश्रा 2025/07/06 08:37 PM
साहित्य कुंज में प्रकाशित भावप्रवण कवि,साहित्यकार डा प्रकाश मनु की पांच कविताओं को.पढने का पाठकीय सुख अप्रतिम है।सबसे पहली रचना अमृता प्रीतम को.समर्पित कविता जैसे भावनाओ की एक नदी है जीवन की शाश्वत अनुभूतियों की उठती गिरती लहरें जो नदी के सौंदर्य को द्विगुणित कर देती हैं कुछ वैसा ही वृद्धावस्था का वह चिर नवीन सौंदर्य दिप दिप करता हुआ बहुत कुछ कहता है ।वह भी जो अव्यक्त सा है और हाथों में कलम थाम जब.वह.शब्दों को आकार देती.हैं तब प्रेम स्वयं परिभाषित हो उठता है।वह.प्रेम आदर सम्मान और ईश्वरीय सृष्टि की उत्तम कला के.समान पूजित लगती थीं।अमृता प्रीतम की कविताए उनके व्यक्तित्व की एक खुली किताब की तरह थीं। डा प्रकाश मनु की कविता भावप्रवण और संवेदनशील अनुभूतियोः का एक खूबसूरत गुलदस्ता है जिसकी महक पाठक के मन को आकंठ सुरभित करती है।बहुत ही अच्छी रचना ,अपनी सहजता में अभिव्यक्ति विशालता को समाहित करती कविता पठनीय व संग्रहणीय है। व