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तानाशाह और बच्चे

 

बच्चे खेल रहे हैं छत पर
भूलकर इस उखड़ी दुनिया के सारे उखाड़-पछाड़
उबले हुए दुख और दाह
 
मगर
नाराज़ है तानाशाह! 
 
पसंद नहीं है तानाशाह को यह क़तई पसंद
नहीं है
कि बच्चे खेलें अपनी मर्ज़ी का खेल
ऐन अपनी मर्ज़ी के वक़्त में
तानाशाह को पसंद नहीं है
बच्चे बनाएँ अपनी मर्ज़ी का चित्र
अपनी मर्ज़ी की लकीरें
उसमें मर्ज़ी के रंग भरें
 
तानाशाह को पसंद नहीं है
बच्चे ज़ोर-ज़ोर से करें बातें
हँसें बेबात खिलखिलाएँ
जब मेहमान डाइनिंग टेबल पर तनकर बैठे हों! 
 
भूलकर उसकी और मेहमानों की 
महिमामयी उपस्थिति
बच्चे अपने गुड्डे-गुड़ियों, नाटक, चित्रकला में रहें लीन
तानाशाह को यह पसंद नहीं है
कि बच्चे ख़ुद सोचें
ख़ुद रोपें
ख़ुद रचें
ख़ुद बनाएँ नक़्शा और उस पर चलें
 
तो फिर जो बेशक़ीमती नक़्शा उसने तैयार करवाया है
होशियार आर्किटेक्टों, इंजीनियरों से
ख़ूब सोच-समझकर तैयार करवाया है जो
अंतरराष्ट्रीय फ़्रेम
बिजूका बच्चे का टाईदार
उसका क्या होगा? 
 
सो तानाशाह ग़ुस्से में है
वह झिड़कता है तेज़ नकसुरी आवाज़ में
झिंझोड़ता है बेरहमी से
डाल, हरी डाल—
उसमें दम ही कितना
नया बिरवा ही तो है! 
 
भरभराकर गिर जाता है बच्चों
का खेल-संसार! 
 
रुक गया है नाटक अब
रुक गई है गति
सहमे गुड्डे-गुड़ियाँ भालू ऊँट ख़रगोश
मिट्टी और कपड़े के
 
बच्चे सहम गए हैं
मेहमान ख़ुशी-ख़ुशी विदा हुए
बुद्धिजीवी मसिजीवी मस्तिष्क मरु विशाल! 
 
तानाशाह उठता है सुकून से
अपने लिखने की मेज़ पर जा बैठता है
खोलकर सोने का पेन
लिखेगा अब वह बच्चों के मनोविज्ञान
पर कोई बढ़िया सा लेख
उसे इंटरनेशनल जर्नल में छपाएगा

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