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तुम बेहिसाब कहाँ भागे जा रहे हो प्रकाश मनु

 

सबके अपने-अपने रास्ते हैं अपनी मंज़िलें
सबकी अपनी-अपनी बहियाँ, हिसाब और लेनदारियाँ
अपने-अपने क़ायदे हैं अपने-अपने फ़ायदे
वे चलने से पहले पूरा हिसाब लगा लेते हैं 
वक़्त और पसीने की एक-एक बूँद का
चलने से पहले उन्हें पता होता है 
किस मोड़ किस मंज़िल पर उन्हें मिलनी है कौन-सी सौग़ात
और क़ीमत उसकी विश्व-बाज़ार में क्या है
 
वे सब दौड़ रहे हैं अपने-अपने हिसाब अपने क़ायदे से
मगर तुम . . .? 
तुम यों बेहिसाब कहाँ दौड़े जा रहे हो प्रकाश मनु
चेहरा लाल हो रहा है तुम्हारा शाम के थके हुए सूरज-सा
पसीने से चुहचुहा आया माथा
और तुम दौड़े जा रहे हो पागल जुनून में
बग़ैर देखे हवा का रुख़ दायाँ-बायाँ
कि ऊँची-नीची पथरीली ज़मीन, गड्ढे खाइयाँ और झंखाड़
 
कौन हो तुम, क्या हो तुम, कहाँ जाना है तुम्हें प्रकाश मनु
कहाँ दौड़े जा रहे हो तुम बेहिसाब
जिधर दिल कहता है कि सच वहाँ है दमकता
दौड़ते हैं तुम्हारे पैर तुम्हारी आँखें तुम्हारा जिस्म
तुम्हारी एक-एक साँस तक
और तुम पागल जुनून में धुनते चले जा रहे हो रास्ते की धूल
ऐसे तो बर्बाद हो जाओगे तुम प्रकाश मनु और मिलेगी नहीं तुम्हारी राख 
और हड्डियाँ तक
 
किस पागल जुनून में तुम कहाँ दौड़े जा रहे हो प्रकाश मनु
बेहिसाब . . . एकदम बेहिसाब . . . 
ख़ुद से ही गुत्थमगुत्था—लस्तपस्त
कहाँ पहुँचेगी तुम्हारी यह पागल दौड़
और दौड़ते-दौड़ते कहाँ गिरोगे तुम हिसाब वालों की दुनिया 
के किसी हाशिए में . . .? 
 
रुको, ज़रा रुको प्यारे भाई, 
और हो सके तो मेरे सवाल का जवाब दो। 

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