बच्चों के मयंक जी
काव्य साहित्य | कविता प्रकाश मनु15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मैं आपसे कभी मिला नहीं मयंक जी
पर यह भी कैसे कहूँ कि नहीं मिला
जबकि नंदन में दर्जनों बार आपसे होती थीं मुलाक़ातें
और वे कैसी थीं रस से भरी जीवंत मुलाक़ातें
जबकि मेरे हाथों में होती थीं आपकी ताज़ा कविताएँ
साथ में एक सुंदर सी चिट्ठी विनीत भाव से भेजी गई
पर हमारे लिए सौभाग्य था उन्हें छापना
छपतीं थीं आपकी कविताएँ अक्सर और बच्चे पढ़कर ख़ुश होते थे
पर उनसे पहले तो मैं ख़ुद जो आपकी कविताएँ पढ़ते हुए
एक छोटे से शिशु में बदल जाता था
जिसकी दुनिया का हर राज हर भेद जानते थे आप और आपकी कविताएँ
जिनमें बच्चे होते थे और बच्चों की दुनिया का बड़ी दूर तक पसारा
उनमें बच्चे हँसते गाते और किलकते थे
चहकता था ख़ुद मेरा बचपन भी
बड़ी दूर-दूर तलक था आपकी बाल कविताओं का पसारा
जिनमें बच्चे थे हँसते चहकते हुए
कभी वे गेंद खेल रहे होते तो उनके हर टप्पे खाती गेंद
की छाप चली आती थी आपकी कविता में
कभी उड़तीं पतंगें तो लगता कि बच्चे नहीं पतंग उड़ा रहे हैं मयंक जी, आप ख़ुद ही
और खेल-खेल में कटी मेरी पतंग तो उछलकर आप कह रहे हैं, बोक्काटा
और वही बोक्काटा बन जाता था आपकी कविता का सबसे प्यारा रसभीना स्वर
कभी लगता मैं और आप मिलकर गली में लंगड़-लंगड़ खेल रहे हैं
लंगड़ लड़ा ले का ख़ूब शोर मचाते हुए
कभी आपका लंगड़ कटता कभी मेरा मगर मज़ा बहुत आता
और लंगड़-लंगड़ खेलते और काटते हुए एक-दूसरे का लंगड़
मिलती जो ख़ुशी
उसके आगे दुनिया के सारे ख़जाने फ़ुज़ूल लगने लगते
कभी देखते थे आप चिड़िया को उड़ते आसमानों में
और चिड़िया की चहचहाती उड़ानों पर गीत बुनने लगते थे
कभी खेलता मैं कबड्डी-कबड्डी आपके साथ
तो मुझ समेत सारे खिलाड़ी समा जाते आपकी कविता में
बहुत थे रंग आपकी बाल कविता में बहुत छवियाँ
बचपन की
गो कि उनमें बचपन था सीधा, सरल सादगी का बचपन
उसमें सब कुछ खुला था खुली धरती खुला आसमान
खुली भावनाएँ मन की और कहीं अगर-मगर नहीं
मैं देखता हैरानी से कैसे हैं कवि आप जिसने कभी नहीं करना चाहा
कोई चमत्कार कविता में
पर फिर भी आपकी कविता बन जाती थी सबसे असरदार, बेजोड़ भी
क्योंकि उसमें बचपन का सीधा-सरल सुर था, जिसमें रमते थे बच्चे
आपके अपने समय के बच्चे, अगली पीढ़ियों के भी
मैं पढ़ता था आपकी कविताएँ तो याद आते प्रेमचंद
जहाँ इतना ही सीधी और सादी थी भाषा
उसी में वे छू लेते थे वे इस क़द्र कि जो कुछ वे लिखते
वह दिल में उतर जाता
ऐसे ही आपकी कविता होंठों पर चढ़ती और हर बच्चे की कविता हो जाती
तो भूल जाते लोग कि यह कविता तो मयंक जी ने लिखी है
पर इससे बड़ी हो नहीं सकती किसी कवि की सफलता
सार्थकता भी
कभी-कभी लगता कहीं आप बाल कविता के प्रेमचंद तो नहीं
जो इतनी सरलता से खड़ा कर देते हैं बच्चों का पूरा जादुई संसार
वह आपके समय में था सही, आज भी है
कम से कम मैं तो जब भी जाता हूँ उसमें तो बचपन की दीख पड़ती हैं
वो रंगारंग झाँइयाँ
जिनसे गुज़रा मेरा बचपन
पढ़ता हूँ तो अवाक् रह जाता हूँ
इससे बड़ी नहीं हो सकती किसी कवि की सफलता
इसलिए समय आएगा समय जाएगा
मगर आप थे, हैं और रहेंगे पहले से कहीं ज़्यादा अर्थवान होकर
अंत में अपने शताब्दी वर्ष पर एक पचहतर बरस के श्वेतकेशी बच्चे का
सलाम लीजिए मयंक जी,
जिसने आपको पढ़ा है और पढ़-पढ़कर फिर से जिया है अपना बचपन
उस बचपन की ओर से बच्चों के कवि को सलाम मयंक जी!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
ब्रजेश कृष्ण 2025/09/18 05:10 PM
कवि भाई, तुम्हारी चारों कविताएं बहुत अंतरंग और सुंदर हैं। हार्दिक बधाई। खूब स्वस्थ रहना। हर समय लिख रहे हो। - ब्रजेश कृष्ण, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
श्यामपलट पांडेय 2025/09/17 05:09 PM
श्रद्धेय, मैंने चार बड़े साहित्यकारों चंद्रपालसिंह यादव 'मयंक', गिरधर राठी, प्रदीप सुड़ेले, और विजयकिशोर मानव पर रची गई चार अलग-अलग कविताओं को डूबकर पढ़ा। हर कविता अपने कथ्य और शिल्प में अनूठी है और संस्मरण की खुशबू से सराबोर है। आपने उनसे अर्जित स्मृतियों को सँजोकर रखा, जो उनसे जुड़ी रचनाओं में जगमगा उठी हैं। कविताएँ पाठक के दिल में गहरे उतरकर संवेदना के बारीक तारों को झंकृत करती हैं। ऐसी कालजयी रचनाओं के सृजन के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें,श्रद्धेय। कविताओं को साझा करने के लिए हार्दिक आभार। सादर, सविनय, श्यामपलट पांडेय, अहमदाबाद (गुजरात)
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
साहित्यिक आलेख
कहानी
कविता
- अमृता प्रीतम के लिए एक कविता
- एक अजन्मी बेटी का ख़त
- एक कवि की दुनिया
- कुछ करते-करते हो जाता है कुछ-कुछ
- क्योंकि तुम थे
- गिरधर राठी के लिए एक कविता
- चलो ऐसा करते हैं
- तानाशाह और बच्चे
- तुम बेहिसाब कहाँ भागे जा रहे हो प्रकाश मनु
- त्रिलोचन—एक बेढब संवाद
- दुख की गाँठ खुली
- दुख ने अपनी चादर तान दी है माँ
- दोस्त चित्रकार हरिपाल त्यागी के लिए
- नाट्यकर्मी गुरुशरण सिंह के न रहने पर
- पेड़ हरा हो रहा है
- बच्चों के मयंक जी
- बारिशों की हवा में पेड़
- भीष्म साहनी को याद करते हुए
- मैंने किताबों से एक घर बनाया है
- मोगरे के फूल
- राम-सीता
- विजयकिशोर मानव के नाम एक चिट्ठी
- हमने बाबा को देखा है
- ख़ाली कुर्सी का गीत
स्मृति लेख
आत्मकथा
व्यक्ति चित्र
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
पद्मा मिश्रा 2025/09/22 01:38 PM
साहित्य कुंज में प्रकाशित आदरणीय प्रकाश मनु.सर की कविताओं का जादू पाठकों के सिर चढ़कर बोलता है। इस काव्य शृंखला में उनके मित्रों पर बचपन की मोहक स्मृतियों पर भी अत्यंत सुंदर सृजन मिलता है.जहां इस.रचनात्मक सफर में मन स्वयं बालपन के मधुर दौर से गुजरता है।आदरणीय प्रकाश मनु.सर ने अपनी पहली रचना में अपने मित्र मयंक जी को याद करते.हुए नंदन बाल पत्रिका के.प्रकाशन की.मधुर स्मृतियों को जीवंत करने का सुखद प्रयास किया.है। जिस मित्र से वे प्रत्यक्ष कभी नहीं मिले बल्कि उनका परिचय उनकी बाल कविताओं से पहली बार हुआ और उन्होने मयंक जी के व्यक्तित्व को उनके कृतित्व के माध्यम से जाना था। जब प्रकाशनार्थ प्राप्त मयंक जी की बाल कविताओं को पढना उन्हें स्वयं अपने बचपन के दिनों में लौटा ले.जाने की सुखद प्रक्रिया होती थी।मयंक जी की.बाल रचनाए बच्चे भी पढना पसंद करते.और बडे भी। स्वयं एक प्रकाशक के.रुप में प्रकाश मनु.का अंतर्मन उन कविताओं को पढते.समय एक.शिशु.बन.जाता और बच्चों की मोहक मासूम दुनिया का कोना कोना छान आता उनका कवि मन। वे स्वयम कहते.हैं- पर उनसे पहले तो मैं ख़ुद जो आपकी कविताएँ पढ़ते हुएएक छोटे से शिशु में बदल जाता था जिसकी दुनिया का हर राज हर भेद जानते थे आप और आपकी कविताएँ । जिनमें बच्चे होते थे और बच्चों की दुनिया का बड़ी दूर तक पसारा उनमें बच्चे हँसते गाते और किलकते थे चहकता था ख़ुद मेरा बचपन भी।* प्रकाश मनु.सर कहते हैं कि मित्र मयंक जी की रचनाए इतनी सहज स्वाभाविक भाव बोध से भरी होती थीं कि उनका सीधे सीधे पाठक के मन में उतर जाना एक.स्वाभाविक अनुभूति थी।उन्होने कविता में छंदों की कलाकारी ,चमत्कार शैली या कल्पना कौ जगह नहीं दी थी बल्कि बचपन की दुनिया में खिलते संवरते सपनों का खुला आसमान होता जिसमें चांद तारे चिडिया ,कबड्डी के खेल.,लुकाछिपी न जाने कितनी सरल.नादानियां.होती ,बच्चों का.मन जिसमें आकंठ डूबा रहता था। कभी देखते थे आप चिड़िया को उड़ते आसमानों में। और चिड़िया की चहचहाती उड़ानों पर गीत बुनने लगते थे। कभी खेलता मैं कबड्डी-कबड्डी आपके साथ तो मुझ समेत सारे खिलाड़ी समा जाते। आपकी कविता में बहुत थे रंग आपकी बाल कविता में , बहुत छवियाँ बचपन की मयंक जी की रचनाओं में.आदरणीय प्रकाश मनु.सर ने प्रेमचंद की सच्चाई जीवंतता और स्वाभाविक अनुभवों को देखा तो जीवन की आपाधापी में रोज के.संघर्ष और भावी पीढी को उनसे लडते.जूझते.भी पाया था।स्वयम बाल रचनाकार हैं अत: बच्चों का मन उनकी दुनिया ,कल्पना जगत को.बखूबी समझते.थे। आपके अपने समय के बच्चे, अगली पीढ़ियों के भी मैं पढ़ता था आपकी कविताएँ तो याद आते प्रेमचंद जहाँ इतना ही सीधी और सादी थी भाषा उसी में वे छू लेते थे वे इस क़द्र कि जो कुछ वे लिखते वह दिल में उतर जाता। सचमुच ये.यथार्थ और बेबाकपन.ही एक लेखक के सृजन की.सार्थकता है।बहुत बहुत बधाई आदरणीय प्रकाश मनु.सर आपका सृजन अभिभूत करता है।मन का हर.भाव जैसे कलम के जादू में बंधकर उसी बालपन की दुनिया में खो जाता है।अशेष धन्यवाद आभार इस सुंदर सृजन के लिए। सादर प्रणाम बाबूजी। पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर