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हे राम!

 

राम तुम क्यूँ ना बन सके प्रैक्टिकल, 
कि जब मेघनाद का तीर लगा लखन को, 
क्यों तुमने द्रवित किया था मन को। 
बुलाया भेजकर हनुमान को वैद्य सुशेन को, 
गोद में रखे सिर को अपने लखन को। 
रुदन करते हुए करते रहे विनती वैद्य से। 
बचा लो किसी भी तरह टुकड़े को मेरे मन के॥ 
कि जी ना सकूँगा अपने लाड़ले के बिना, 
निकलेंगे प्राण मेरे भी साथ मेरे लखन के। 
हाथ जोडे हनुमान के, ले आओ संजीवनी कैलाश से, 
करता हूँ विनती बच जाए लखन इस आस से॥ 
क्यों किया राम तुमने अपनी गरिमा का अपमान, 
क्यों दाँव पर लगा दी तुमने अपनी जान॥ 
कह सकते थे तुम यही है लिखा नियती का, 
कौन बदल सका है भाग्य किसी का। 
अग़र तुम्हारी आयु इतनी ही बची रेखाओं में, 
क्या उपयोग रखा वैद्य और औषधियों में॥ 
कि रखकर सिर तुम्हारा गोद में मैं अपनी, 
निकाल दूँगा समय जब तक रहे तुम्हारी अंतिम साँस भी। 
कहना था लखन तुम्हे् रखना होगा भाव समता का, 
कि होगा आज ये परीक्षण तुम्हारी आत्म क्षमता का॥ 
ना करना तुम अपनी ख़ातिर परेशान औरों को, 
लखन त्याग देना तुम शांत मन से अपने प्राणों को। 
समय यही है संसार को सकारात्मकता सिखाने का, 
छोड़ नियती पर सबकुछ इंतज़ार प्राणों के जाने का॥ 
राम तुम क्यों ना बन पाए प्रैक्टिकल, 
समझा कर लखन को क्यों ना बढ़ाया संबल, 
राम तुम क्यों ना बन पाए प्रैक्टिकल॥। 

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