मैं मणिपुर हूँ
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र जैन15 Aug 2023 (अंक: 235, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सुन सको तो सुनो, दिल को मज़बूत कर, दास्तां अपने ग़म की बताता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
दौर था एक जब मैं ख़ुशहाल था, इन पहाड़ों पर सब्ज़ बाग़ान थे,
भारी मन से खड़े हैं स्तब्ध से, वो पहाड़ अब वहाँ बेजान से,
दर्द इनसे भी ऊँचा सहता हूँ और आँसू हज़ारों बहाता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
देश महावीर गाँधी की अहिंसा का ये, आज देखो भला कितना है गिर गया,
मैं अकेला जला ना मेरे साथ में देश का स्वर्णिम इतिहास भी जल गया,
लपटें नफ़रत की उठती धरा से मेरी, रो रोकर आँसुओं से बुझाता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
भाई बनकर जो रहते थे कल तलक, ज़हर उनके दिलों में है घोला गया,
स्वार्थ और सत्ता की ख़ातिर इन्हें ज़्यादा कम के तराज़ू में तोला गया,
अपनी धरती पे बहता लहू देखकर मन ही मन छटपटाता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
सड़कों और चौराहों पे निर्वस्त्र कर, मेरी अस्मत को लूटा घुमाया गया,
वादा जिनको पढ़ाने बढ़ाने का था, जिस्म उनका भीड़ से नुचाया गया,
देखता बस रहा मौन होकर खड़ा, कितना बेबस अपने को पाता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
तुमपे विश्वास कर ख़ुद को सौंपा तुम्हें सोचा था मेरे संकट मिटाओगे तुम,
आहें भरकर पुकारूँगा जब कभी, मुझ तलक दौड़े दौड़े चले आओगे तुम,
सत्ताधीशों को भारत के धिक्कार है, तुम्हारी ख़ामोशी का बोझ उठाता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
देख मुझको सुलगता क्या शर्मिंदगी एक पल को भी महसूस होती नहीं,
औरतों पे हुए अत्याचारों से भी आँखें दो आँसू संवेदना के रोती नहीं,
महाभारत की तरह अहंकार की, सत्ता ढह जाएगी अभिशाप दोहराता हूँ मैं,
मैं मणिपुर हूँ, इन दिनों में मुझपे क्या बीती हरेक गाथा सुनाता हूँ मैं!!
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