तुमसे है हौसला
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र जैन1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ढलती हुई किसी शाम में
मेरे कांधे पर अपना सर रखे
बैठी हो तुम जब,
तुम्हारी पलकें आँसुओं से भीगी हों
और दुनिया धुँधली सी दिखती होगी,
मैं तुम्हारे कानों में यह कह सकूँ
माना तुम्हारे सामने नज़र आ रही राह
जितनी दिख रही है, उससे भी ज़्यादा कठिन हो
मग़र, मैं तुम्हें अपनी बाँहों में समेटकर
महफूज़ रखूँगा!!
मैं चलना चाहता हूँ
अपनी हथेलियों में तुम्हारा हाथ थामे
और महसूस कर सकूँ, तुम्हारा साथ
तुम्हारी ऊष्मा, तुम्हारा ‘औरा’ अपने चारों तरफ़!!
बता सकूँ तुम्हें, कि मेरी डगर भी कुछ आसान नहीं
लेकिन, तुम्हारा होना, मुझे हिम्मत देता है
चुनौतियाँ का सामना करने और उन्हें हरा देने की!
और हिम्मत देता है तुमसे यह कह पाने की,
माना हमारी राह कठिन है, मगर
हम साथ हैं एक दूसरे का हौसला बनकर,
एक दूसरे की उम्मीद बनकर!!!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं