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महावीर जन्म कल्याणक

 

(महावीर जयंती) 

निरख निरख के रूप तुम्हारा “महावीर” दिल भरता ही नहीं, 
तेरे चरणों से उठकर जाने को मन करता ही नहीं!! 
सफल हो गए नर भव सब के जो भी दर्शन को पाए, 
बुला रहा सौभाग्य सभी को विघ्न कोई पड़ता ही नहीं॥
 
रवि सम आभा मुखमण्डल पर कामदेव सी काया है, 
रूप अनंग तेरा प्रभुवर जो हर प्राणी को भाया है! 
बाल ब्रह्मचारी तुम स्वामी “वर्द्धमान” चारित्री हो, 
“सन्मति” के जुगल पद पर हर भक्त ने शीश नवाया है॥
 
इंद्रधनुष भामण्डल तेरा चंवर हवाएँ ढुराती हैं
शशि रवि सम दीपक ले प्रकृति आरती तेरी गाती हैं। 
नभ बन जाता छत्र तुम्हारा ग्रह प्रदक्षिणा देते हैं
दशों दिशाएँ यशोगाथा गा अपना मान बढ़ाती हैं। 
 
पर इन सबसे निस्पृह हो तुम आत्म ध्यान किया करते, 
निर्मोही हो “वीर” प्रभु ना तन पर ध्यान ज़रा धरते, 
वीतरागी ये छवि तुम्हारी भक्तों को मन भाती है
कर्म शत्रु सब जीत लिए सो “अतिवीर” भी कहा करते। 
 
अतुल तुम्हारा बाहुबल पर ये ना कोई बात बड़ी, 
बारह वर्षों तक कर्म निर्जरा को घोर तपस्या करी कड़ी, 
जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर बन सार्थक जन्म किया तुमने, 
शल्य रखी न हृदय में कोई टूट पड़ी कर्मों की लड़ी॥
 
सिद्धांत अहिंसा, करुणा, दया का जीवों के प्रति, सिखलाया, 
“जियो और जीने दो” का उपदेश जगत में फैलाया, 
हिंसा और विध्वंस ने विश्व में जब जब पैर पसारा है
वर्तमान में “वर्द्धमान” को सारी धरा ने पुकारा है॥
 
शीश झुकाकर तुव चरणन में यही भावना हम भाएँ, 
“महावीर” सम हम भी मोक्षमार्ग में निराबाध चलते जाएँ, 
मोह कषाय की विषबेलों से अब तक तो हम जकड़े हैं, 
बाहुबलि बन जाएँ यहाँ सभी कर्म के बंधन कट पाएँ। 

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