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रक्षाबंधन

 

बहन इक भाई के जीवन में रिश्ते कई निभाती है, 
बन के साया माँ की तरह हर विपदा से बचाती है, 
कभी हमराज़ बन उसके राज़ दिल में छिपाती है, 
जुगनू बनके अँधेरों में सफ़र आसां बनाती है!! 
 
बहन जब भाई के हाथों में राखी बाँधती है तो, 
दुआ बस एक ही अपने प्रभु से माँगती है वो, 
सलामत हो सदा भैया ना हो कोई कष्ट जीवन में, 
बलाएँ उसकी लेने ख़ुशियाँ ख़ुद की वारती है सो!! 
 
तिलक माथे पे कर उसकी जीत की भावना भाती है, 
अक्षय सुख समृद्धि के भाव से अक्षत लगाती है, 
श्रीफल, कुंकुम, अक्षत, जल, आरती और राखी, 
मंगल हो भाई का शुभ द्रव्यों से थाल सजाती है!! 
 
लड़कपन की सभी यादें वो बचपन की हर शैतानी, 
पहले तोहफ़ा तभी बँधेगी राखी की वो मनमानी, 
छुआकर मिठाई पूरी खाने की वो ज़िद करना, 
ना मानूँ बात इक भी तो बहाना आँखों से पानी! 
 
अगर हो दूर ये त्योहार फिर ख़ाली सा रहता है, 
प्रेम का इक ही आँसू दोनों की आँखों से बहता है, 
बहन की भेजी मौली भी बँधी पूरे साल रहती है, 
कि हूँ मज़बूत सबसे, कच्चा सा धागा ये कहता है! 
 
ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने में मशग़ूल हों चाहे, 
रहें न दुनिया में तेरी नज़र से दूर हों चाहे, 
मना लेना याद करके मुझे हर बार तुम ये दिन, 
तुम्हारी थाल में राखी इक मेरे नाम की हों चाहे!! 

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