घृणा और प्रेम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नवीन दवे मनावत1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
मैं नहीं समझ सका
कि प्रेम की एक विडंबना है. .
और. . .
बैठ गया टूटे और दरारी खंडहरों पर
अनिश्चित सा होकर
सोचने लगा कि कैसी होगी
निश्छल प्रेम की परिभाषा!
गढ़ने लगा
घृणा के शब्द. .
यत्र-तत्र
निष्कर्ष:
प्रेम विडंबित लगा
और. . . .
घृणा
निश्छल
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