क़िले वाला शहर
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अविनाश ब्यौहार15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
खंडहर ही खंडहर
औ क़िले वाला
शहर है।
बल खाई चोटी सी
झील में उठती
लहर है॥
बाँस वन में हवाएँ
सीटियाँ बजाती हैं।
सलीक़े से बिखरे घर को
वो सजाती हैं॥
एक अचीन्हा दु:ख
जो टीसता आठों
पहर है।
शहर के सिवान में
तृषित रेत की नदी है।
प्रतिबिंब महाभारत का
ढो रही सदी है॥
बेरहम आँसुओं ने
आँख में ढाया
क़हर है।
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