जब-जब मुझको है मिला
शायरी | ग़ज़ल अविनाश ब्यौहार1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
दोहा ग़ज़ल
जब-जब मुझको है मिला, जीने का उल्लास।
जीवन उसके पास था, बीहड़ मेरे पास॥
जीवन में संघर्ष है, होता समय कठोर।
धीरे-धीरे खो रही, कुछ पाने की आस॥
अंधकार बलवान है, करता अक़्सर चोट।
सूर्य किरण मुँह फेरती, बेबस हुआ उजास।
विपदाएँ आतीं रहीं, जीवन करतीं नष्ट।
मानवता मरने लगी, होता है आभास।
राहू डँसता आचरण, केतू डँसे स्वभाव।
कांतिहीन परिवेश है, सारे विफल प्रयास।
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राजनन्दन सिंह 2021/05/07 02:16 PM
दोहा और गज़ल शैली का मिला-जुला यह रुप। मुझे लगता है हिन्दी दोहे में एक नया प्रयोग है। बहुत बढिया। बधाई