यार ज़माना देख लिया है
काव्य साहित्य | गीतिका अविनाश ब्यौहार1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
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यार ज़माना देख लिया है।
पैसा खाना देख लिया है॥
कितनी भर्रेशाही दिखती,
मैंने थाना देख लिया है।
तय होती है उसकी शादी,
आज लजाना देख लिया है।
पैबंद लगी पहने धोती,
अंग दिखाना देख लिया है।
भूख लगी है भूख लगी है,
भीख मँगाना देख लिया है।
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