बारिश की ऋतु आ गई
शायरी | ग़ज़ल अविनाश ब्यौहार15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
दोहा ग़ज़ल
बारिश की ऋतु आ गई, गरज रहे हैं मेह।
रिमझिम -रिमझिम बूँद से, नहा रही है देह।।
दादुर-झींगुर गा रहे, हैं पावस के गीत,
पौधों-पत्तों को मिला, हरियाली का नेह।।
बारिश की बौछार से, सिहर उठे हैं गात,
चट्टानें धुलने लगीं, औ धुलते हैं गेह।
भोजन रक्खा थाल में, बना नहीं है स्वाद,
खाना हो तो चाटिए, आमों का अवलेह।
ख़्वाहिश सोने सी तपी, उसका रंग न रूप,
कैसे हो साकार अब, होगी अगर विदेह।
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