झमेला है
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अविनाश ब्यौहार15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पत्थर दिल
इंसान हुआ है
दिल पसीजा चट्टानों का।
नातों के सरोवर
भाप हो गए हैं।
शिलाखंड बर्फ़ के
ताप हो गए हैं॥
अगर सुमति है
परिवार में
मुँह उतरा-उतरा तानों का।
लगती है नदी
आँसुओं का रेला है।
झूठा अपनापन
जैसे झमेला है॥
स्वार्थ की
चाकू से छलनी
जिस्म समूचा अहसानों का।
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