अविनाश ब्यौहार – दोहे – 001
काव्य साहित्य | दोहे अविनाश ब्यौहार15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
किस मिट्टी का है बना, देखो सकल समाज।
जब चिड़ियों की है सभा, मुखिया बनते बाज़॥
तब केवल ईमान था, और उचित थे दाम।
रिश्वत जैसी ज़िन्दगी, क्यों दे दी है राम॥
प्रजातंत्र के नाम पर, यहाँ मची है लूट।
लोग अराजक हो गए, देश रहा है टूट॥
रिश्ते अब लगने लगे, जैसे कोई भार।
क्या नदियों से नेह की, लगी सूखने धार॥
न्याय और अन्याय में, दिखा नहीं है फ़र्क़।
सच को दोषी कह रहे, आज झूठ के तर्क॥
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