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एक टीन एज/किशोर के मन की पीड़ा

किशोरावस्था ही वह अवस्था है जब एक लड़के या लड़की को उसके माता-पिता एवं शिक्षकों से अधिक ध्यान, प्यार, सलाह और सहयोग मिलने की अत्यंत आवश्यकता होती है। पर अफ़सोस, आज के आधुनिक युग में भी जब हर तरह के ज्ञान को अत्यंत सरलता पूर्वक एक स्मार्ट फोन से भी प्राप्त किया जा सकता है, फिर भी बहुत से लोग किशोरों की समस्या से अनजान कैसे रह जाते हैं। आजभी स्वयं को शिक्षित कहने वाले बहुत से लोग एक किशोर लड़के की परेशानियों को समझने की कोशिश नहीं करते हैं।

अक़्सर देखा जाता है कि एक लड़की की समस्याओं से तो कुछ हद तक लोग परिचित होते हैं और समझने की कोशिश भी करते हैं। पर लड़के भी उम्र की इस नाज़ुक मोड़ पर कुछ ख़ास चिंता और पीड़ा से गुज़र रहे होते हैं, यह जानने और समझने की कोशिश शायद ही कोई करता है।

मेरा मानना है कि इस उम्र में लड़के, लड़कियाँ दोनों ही अपने आप में आये हुए परिवर्तनों से अनजान और परेशान रहते हैं; पर लड़की को समझाने या सुनने वाली माँ, बहन या भाभी मिल जाती हैं। पर लड़के अपने स्वभाव के परिवर्तन और घर के बड़े सदस्यों के द्वारा कुछ बड़ा करने की मिल रही निरर्थक सलाहों और अपने किशोरावस्था के अनुरूप जगे सपनों के बीच जूझ रहे होते हैं। उन्हें भी सुनने, समझने या प्यार से समझाने वाला कोई नहीं होता; क्योंकि लोगों की यही धारणा होती है कि वह तो लड़का है, भला उसे क्या तकलीफ़ हो सकती है—ईश्वर ने तुम्हें जन्म से ही मज़बूत बनाया है। एक माता-पिता और शिक्षक के तौर पर हमें यह समझना होगा कि लड़की की तरह लड़के का, कोमल शरीर और मासिक धर्म जैसी समस्याओं से सामना भले ना हो, पर  हृदय उनके पास भी है। हमारे अधूरे सपनों को पूरा करने हेतु चिंता और पीड़ा तो उन्हें भी होती है बल्कि उन्हें ही अधिक रहती है क्योंकि उनके ऊपर कुल के चिराग होने और कुल का नाम रौशन करने की ज़िम्मेदारी दे दी जाती है; बिना उनके ख़्वाबों-ख़्वाहिशों को जाने-समझे।

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