तंज़ और कामयाबी
काव्य साहित्य | कविता बीना राय1 Dec 2021 (अंक: 194, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
बेशक हँसने वालों को
शह देती रहती है
तुम्हारी नाकामयाबी
उनके तीखे तंज़ तुम्हें
तौहीन कर छीन लेते हैं
तुम से ही तुम्हारी
ख़ुशियों की चाबी
पर तुम कभी भी
ख़ुद से निराश न होना
मंज़िल ना मिलने पर
कभी हताश न होना
बस जगाए रखना दिल में
तुम तरक़्क़ी की बेताबी
पकड़ कर उँगली
विश्वास का सफ़र
को जारी रखना
गिरना, उठना, सँभलना
फिर बेतहाशा बस तुम
आगे की तरफ़ बढ़ना
पर वक़्त बर्बाद न करना
करने में कभी भी
किसी से जंग जवाबी
ना छोड़ना कभी भी
आँखों में ख़्वाब सजाना
तुम कर्म की आँच पर
मीठी उम्मीद को पकाना
और देना दावत उनको भी
जिन्होंने छीनी थी कभी तुमसे
तुम्हारी ख़ुशियों की चाबी
महफ़िल में उनको देख
तुम काम सब्र से लेना
उन सारे तंज़ वालों को
बेहिसाब क़द्र देना और
और शुक्र अदा करना
उस तंज़ का जिसने
तुम्हें दिलाई कामयाबी
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