नारी ही नारी के तरक़्क़ी में बाधक
आलेख | सामाजिक आलेख बीना राय1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
वर्तमान समय की नारी शिक्षा, खेलकूद संगीत अथवा नृत्य प्रतियोगिता में यहाँ तक कि विज्ञान के क्षेत्र में भी बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं व सफल होते हुए भी देखी जा रही है; पर फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि आज के इस आधुनिक युग में भी नारियाँ अपने जीवन को पुरुषों की तरह स्वतंत्र रूप से जी सकतीं हैं अथवा अपने सपनों को साकार करने हेतु उन्हें पुरुषों की तरह ही आज़ादी मिल जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक नारी के तरक़्क़ी में पुरुष शायद ही रोड़ा बनता है पर नारी ख़द किसी न किसी रूप में अवश्य बाधक बनती है।
एक लड़की और महिला को अपने सपने साकार करने में सबसे पहले उसके समाज की महिलाओं के ही तंज़ सुनने को मिलते रहते हैं। ’क्या ज़रूरत है खेलकूद में भाग लेने के बहाने छोटे कपड़े पहनकर अंग प्रदर्शन करने की’, संगीत और नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेना सभ्य लड़की और महिला को शोभा नहीं देता’, कविता और शेरो-शायरी करने से एक औरत की छवि मैली हो जाती है’, ’पति के पास इतना पैसा और शोहरत है तो क्यों नौकरी करती है’, ’शादी होने के बाद आगे की पढ़ाई करने की क्या ज़रूरत है’ वग़ैरह-वग़ैरह। ऐसे सब बेतुके प्रश्नों के माध्यम से अक़्सर बहुत सारी औरतें कितनी ही औरतों और लड़कियों के ख़िलाफ़ बातें करते-करते औरत होकर भी, औरत के तरक़्क़ी में बाधक बनती रहती हैं।
किसी औरत की ज़िंदगी अत्यंत नीच हरकतों में लिप्त व उसके साथ रोज़ मार-पीट करने वाले पति के साथ नर्क बनती है तो शायद ही कोई औरत उसे दुखों से उबरने की सलाह और हिम्मत देते देखी जाती है। किंतु यदि किसी कालोनी अथवा विभाग में कोई तलाक़शुदा महिला रहने आ जाती है तो उसे बिना सोचे-समझे, अत्यंत पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी पति से नहीं निभाने का ताना देते हुए तथा उसके ख़िलाफ़ अपनी एक टीम बनाते देखा जाता है। पुरुष, पुरुषों के जीवन में उतनी दख़ल-अंदाज़ी नहीं करते जितना कि महिलाएँ ही महिलाओं को अनावश्यक टिप्पणियों से परेशान और बदनाम करते देखी जाती हैं। यदि औरतों के मेहनत, शिक्षा, गुणों, ख़ूबसूरती और हिम्मत की क़द्र सच्चे मन से अथवा बिना किसी ईर्ष्या के औरतें ख़ुद करतीं तो शायद नारी जाति अपने जीवन को बहुत सुख और स्वतंत्रता पूर्वक जी पातीं। बहुत कम ही ऐसी महिलाएँ देखी जाती हैं जो किसी अन्य महिला जो बहुत गुणी, मेहनती व उच्च शिक्षा प्राप्त की होती है, उसके ख़िलाफ़ वह कोई चाल न चलती हों और उनके तरक़्क़ी में वह भी खुश रहतीं हों। किसी के गुणों और शिक्षा की क़द्र करना तथा उसकी छोटी-छोटी कमियों को खोज-खोज कर उसे असफल करने के लिए चलने वाले चालों की बजाय ऐसी गुणी और मेहनती औरत को अपने सच्चे मन से अपने मित्रों में शामिल करना दूरदर्शिता और सभ्यता का परिचायक भी तो हो सकता है।
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