गुनगुनाते रहे
शायरी | नज़्म बीना राय1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
धुँध भरी इस ज़िंदगी में भी हम
एक एक क़दम बढ़ाते रहे
दिल बिखर सा गया हादसों में फिर भी
उम्मीद का दिया जलाते रहे
ग़म की आँधियों ने जब भी डराना चाहा
बेवज़ह मुसलसल मुस्कुराते रहे
चमन में काँटों की परवाह किए नहीं
फूलों से हम खिलखिलाते रहे
अब तो तन्हाइयों से है प्यार हो गया
अपनी मस्ती में हम गुनगुनाते रहे
ये हँसी तुम अदू1 छीन सकता नहीं
रायगाँ2 अपने दिल क्यों जलाते रहे
1. अदू=शत्रु, दुश्मन, विरोधी; 2. रायगाँ (राएगाँ)= निष्प्रयोजन, बेकार, निष्फल, व्यर्थ में
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
नज़्म
सामाजिक आलेख
कविता
कहानी
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Ayushii 2021/08/29 08:12 PM
Wow mam u r genius