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बेगुनाही की सज़ा

हमारे जीवन में हमें मन को प्रसन्न और अप्रसन्न करने वाले फल की प्राप्ति होती रहती है। जिस घटना अथवा फल से हमारा जीवन व मन अत्यंत दुखी हो जाता है उसे हम सब सज़ा का ही नाम देते हैं। इंसान को बहुत बार उसके किए और बहुत बार बिना किए की सज़ा भी मिल जाती है। कई बार हम स्वयं को अथवा किसी दूसरे को मिले इन अनचाहे फल या दुःख के लिए आपस में यह प्रश्न भी करते हैं कि किस बात की सज़ा मिली है मुझे, किस बात की सज़ा मिली है उसे आदि। बहुत बार इंसान अपने साथ घटने वाली अवांछित घटनाओं के लिए बिल्कुल भी ज़िम्मेवार नहीं होता है फिर भी वह अत्यंत पीड़ा से गुज़र रहा होता है पर उसे समझने या समझाने वाला या फिर उसकी बेगुनाही साबित करने वाला कभी-कभी कोई नहीं रहता। 

यदि किसी लड़की के साथ बलात्कार जैसी वारदात हो जाती है तो कुछ लोग उन बलात्कारियों को सज़ा दिलाने से संबंधित कोई क़दम भले न उठाते हों पर उस लड़की के ही ख़िलाफ़ कुछ बातें करके व रास्ते में दो चार और को शामिल करके उसे अजीब नज़रों से देख-देख कर उसका रास्ता चलना व जीना ज़रूर मुहाल कर देते हैं। किसी भाई की बहन यदि माँ बाप के मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी कर ले या किसी लड़के के साथ भाग जाती है तो इसमें उस लड़की का दोष है न कि उस भाई का जो कि अपनी बहन के इस विवेकहीन क़दम उठाने से तो पहले ही आहत रहता है; ऊपर से उसके समाज वाले भी उसे गिरी नज़रों से देखने और उसके साथ ओछा व्यवहार करने लगते हैं, जबकि लोग भली-भाँति परिचित होते हैं उसकी बेगुनाही से। 

आए दिन हमारे आस-पड़ोस व गाँव नगर में कोई संभ्रांत वर्ग में रहने वाले या फिर दो नंबर की कमाई में लिप्त इंसान अपने छोटे-मोटे फ़ायदे अथवा अपने किसी पुराने बैर व ईर्ष्या को फलीभूत करने हेतु किसी लाचार व सीधे-सादे इंसान को अपना दमख़म दिखाने के लिए झूठ-मूठ में दोषारोपण करते, कुछ आला अधिकारियों के मुट्ठी गर्म करके उस निर्दोष को जेल की हवा खिलाते रहते हैं। 

फिर जब वह इंसान अपनी बेगुनाही की सज़ा काट कर अपने घर वापस आता है तो उसके समाज के लोग भी बिना-सोचे समझे उसे ताने मारने व अपने हीन दृष्टि का शिकार बनाने से नहीं चूकते। 

किसी की बीबी पति को छोड़ कर किसी और के साथ रहने लगती है या फ़रार ही हो जाती है तो अक़्सर वहाँ के लोग उस बेगुनाह पति और उसके बच्चों को हीनता का शिकार बनाते हैं। बहुत बार कुछ लोग अपनी बेगुनाही की सज़ा और अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाते और आत्महत्या जैसे क़दम भी उठा लेते हैं क्योंकि उन्हें ऐसे घृणित व पीड़ित जीवन से बेहतर मौत ही लगने लगती है। 

एक सभ्य समाज और देश के नागरिक के तौर पर हमारी प्राथमिकता में यह भी शामिल होना चाहिए कि हम इस बात का भी ध्यान रखें कि हमारी वजह से कहीं कोई बेगुनाही की सज़ा तो नहीं भुगत रहा है। क्योंकि हम मानव हैं और प्रकृति ने हमें बोधगम्यता की क्षमता प्रदान की है पर उस क्षमता का उपयोग कैसे करना है वह हम पर निर्भर करता है। अतः हमें विवेकहीन बन कर अपने अहं को पोषित करने हेतु किसी को अपने तानों और हीन दृष्टि का शिकार बनाकर उसे बेगुनाही की सज़ा देने से बचने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। और हो सके तो सत्य प्रमाण और साक्ष्य को प्राप्त कर गुनाहगारों को सज़ा दिलाने की भी कोशिश करनी चाहिए। 

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