जो डर गया वह मर गया
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’4 Feb 2019
एक व्यक्ति ने रात में सपना देखा कि एक शेर उसके पीछे पड़ गया है। और वह भागकर किसी तरह एक पेड़ पर चढ़ जाता है। उसने ऊपर पहुँचकर दम लिया और नीचे देखा, तो शेर अब भी नीचे बैठा हुआ था।
वह जान गया कि उसे काफी समय तक इसी तरह इस पेड़ पर वक़्त गु्ज़ारना होगा। उसने थोड़ा आराम से बैठने के लिए इधर-उधर नज़र डाली, तो उसका दिल ही बैठ गया। उसकी नज़र दो चूहों पर पड़ती है, जो उस शाख को कुतर रहे थे, जिस पर वह बैठा था। इनमें से एक चूहा काला और दूसरा सफेद था। वह जान गया कि देर-सवेर वह शाख भी ज़रूर गिरेगी।
घबराकर उसने एक बार फिर नीचे को चारों ओर नज़र घुमाई। इस बार उसने देखा कि शेर से थोड़ी दूर एक अजगर ठीक उसके नीचे अपना मुँह फाड़े उसके गिरने की राह ही देख रहा है। घबराहट में उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। उसने ऊपर ईश्वर की ओर देखते हुए प्रार्थना करना शुरू की। प्रार्थना के लिए ज्यों ही उसका मुँह खुला अचानक ही उसे लगा कि जैसे उसके मुँह में कुछ मीठी वस्तु आ गई है। उसने देखा उसके ठीक ऊपर एक शहद का छत्ता था, जिससे रिस-रिस कर शहद की बूँदें धीर-धीर गिर रही हैं।
इस मिठास ने उसके मुँह का जायका ही बदल दिया। वह मुँह खोलकर बार-बार बूँद के टपकने का इंतज़ार करने लगा। अब उसे इसमें आनंद सा मिलने लगा। जब भी बूँद गिरती वह खुशी में कूदने सा लगता। चारों ओर ख़तरों से घिर होने के अहसास और उस खौफ़ को भूलकर वह इस खेल में मस्त हो गया। उसे उस समय सिवाय छत्ते और शहद की बूँद के मिठास के कुछ भी दिखाई देना बंद हो चुका था।
सबक: यह सारा डर बस मृत्यु का डर है। अगर मृत्यु के बार में ही सोचते रहेंगे, हर जगह उसे ही देखते रहेंगे, तो जीवन रूपी शहद के आनंद से वंचित रह जाएंगे। जीवन के आनंद को पहचानने वाला ही जीवन का रस ले पाता है।
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