रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ - 1
काव्य साहित्य | दोहे रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’1 Mar 2019
दोहे
1.
जीवन में दुर्लभ रहा, मधुर, मिलन, संयोग।
वे दो पल को क्या मिले, मिला स्वर्ग का भोग॥
2.
मन- दर्पण था झील -सा, निर्मल-पावन प्यार।
अँजुरी भर-भर कर पिया,तेरा यह उपहार॥
3.
इतनी विनती आज है,मेरे प्राणाधार।
रोम रोम में तुम रहो,बन साँसों का सार॥
4.
कौन कहाँ तक चल सका, कौन रहेगा दूर।
जीवन के दो घूँट को,कंठ हुआ मजबूर॥
5.
साँसों पर अब हर घड़ी, होता है प्रहार।
मरना ही आसान है, जीना अब दुश्वार॥
6.
बहुत हुआ अब तो चलो, नील गगन के पार।
यहाँ नफ़रत के साँप है, डँसने को तैयार॥
7.
हम पाखी थे डाल के,जड़ -चेतन से प्रीत।
लोग हमें समझे नहीं, जिनकी छल- बल रीत॥
8.
बाँचेगा कोई नहीं, आँसू भरी किताब।
अन्धे घेरे हैं तुम्हें,अन्धे उनके ख़्वाब॥
9.
दुनिया नदिया ताप की, डूबो, करलो पार।
अम्बर तक तैयार है, लेकर सब हथियार॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
दोहे | डॉ. सत्यवान सौरभमन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार! हर…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आग के ही बीच में
- इस रजनी में
- उगाने होंगे अनगिन पेड़
- उजाले
- एक बच्चे की हँसी
- काँपती किरनें
- किताबें
- क्या करें?
- खाट पर पड़ी लड़की
- घाटी में धूप
- जीवन के ये पल
- नव वर्ष
- बच्चे और पौधे
- बरसाती नदी
- बहता जल
- बहुत बोल चुके
- भोर की किरन
- मुझे आस है
- मेघ छाए
- मेरी माँ
- मैं खुश हूँ
- मैं घर लौटा
- शृंगार है हिन्दी
- सदा कामना मेरी
- साँस
- हैं कहाँ वे लोग?
- ज़रूरी है
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं